वीर मेला

छत्तीसगढ़ अपनी संस्कृति, पर्व और परम्परा के लिए देश भर में जाना जाता है। इसमें मेला-मड़ई का विशेष महत्व है। प्रदेश के सभी जिलों में अलग-अलग रूप में मड़ई का आयोजन होता है, लेकिन बालोद जिलान्तर्गत गुरुर प्रखण्ड में हर साल आयोजित होने वाले वीर मेला का एक विशेष महत्व होता है। इस विशाल मेले में प्रति वर्ष लगभग 3 लाख लोग पहुँचकर पूजा-अर्चना करते हैं तथा सबके सुख, शान्ति और समृद्धि की कामना करते हैं।
धमतरी – जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर धमतरी से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित कर्रेझर की पावन धरा में स्थित राजाराव पठार में आदिवासी समाज के तत्वावधान में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद वीर नारायण सिंह की याद में वीर मेला आयोजित होता है। यह एक त्रिदिवसीय आदिवासी महोत्सव है, जो प्रत्येक वर्ष शीत ऋतु में मनाया जाता है। इस महोत्सव के समापन अवसर पर 10 दिसम्बर को शहीद वीर नारायण सिंह को श्रद्धांजलि दी जाती है और शोभा यात्रा निकाली जाती है।
राजा राव पठार में आयोजित यह मेला बालोद, धमतरी और कांकेर जिले के आदिवासी समाज का एक संयुक्त प्रयास है। यह आदिवासी समाज की वेशभूषा और संस्कृति को जानने का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहाँ आम लोगों के साथ-साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल का भी आगमन होता है। इस मेले में प्रदेश भर के ध्रुवा, गोड़, बैगा, कमार, कंवर इत्यादि समाज के आदिवासी शामिल होते हैं।
वीर मेले में देव की स्थापना, आदिवासी हाट बाजार, रैली, आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम, रेला पाटा, आदिवासी महा पंचायत तथा शहीद वीर नारायण सिंह की श्रद्धांजलि सभा का कार्यक्रम किया जाता है। वर्ष 2013 में शहीद वीर नारायण सिंह का नाम इस मेले से जोड़ा गया। तब से उनकी शहादत दिवस के दिन ही इस मेले का समापन होता है। आदिवासी क्षेत्र के सभी देवी-देवताओं के विशाल मिलन के बाद विशेष पूजा पाठ का आयोजन मेले में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ग्रामीणों के साथ-साथ गॉंव के देवी-देवता भी इस मेले में शामिल होते हैं। यहाँ बाबा राजा राव के साथ लिंगो बाबा और चरवाहा देव भी स्थापित किया गया है, जिसके कारण इसे देव मेला भी कहते हैं।
एक स्थानीय बुजुर्ग आदिवासी ने बताया कि इस क्षेत्र में कोई भी संकट आने पर बाबा राजा राव की पूजा होती है। जनश्रुति के अनुसार बाबा राजा राव इस क्षेत्र का आदिवासी प्रधान था। वह अपनी सादगी, स्वच्छता और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता था। कोई भी समस्या आने पर लोग समाधान की आस लिए उनके पास पहुँचते थे। और, उन्हें बाबा राजा राव का आशीष और सहयोग प्राप्त होता था।
बाबा राजा राव की प्रतिमा की स्थापना कब हुई, आज तक इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। पहले यह मेला कर्रेझर में होता था, लेकिन लोग जब बाबा राजा राव के महत्व को जानने लगे, तब से राजा राव पठार में विशाल रूप में मेला आयोजित होने लगा। ग्रामीणों का मानना है कि बाबा राजा राव के साथ शेर भी निवास करता है। और, जब भी कहीं कोई संकट आने वाला होता है तो इसकी सूचना शेर की दहाड़ से मिलती है। बाबा राजा राव के मुख्य स्थल पर महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्यकार एवं
प्रशासनिक अधिकारी