Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Dec 2023 · 1 min read

परिणति

कुंठित भावना , निरर्थक कामना ,

शोषित मनुष्यत्व ,त्रस्त भंगुर अस्तित्व ,

छद्म लालसा, आभासी आशा, ,

कपटपूर्ण व्यवहार, विस्तृत अनाचार ,

सत्य कठोर , असत्य भावविभोर ,

मंतव्य कलुषित , न्याय वंचित ,

धूमिल संज्ञान प्रकाश ,अच्छादित अंधविश्वास,

स्व महिमा मंडित, आत्मविश्वास खंडित ,

कल्पित धारणा, तर्कहीन विचारणा ,

मनस भावातिरेक , निष्पंद विवेक ,

सुप्त वीरता, निर्भीक आतता ,

लुप्त आस्था, व्याप्त धर्मांधता,

निष्ठा खंडित,चाटुकारिता उदित,

प्रगति समाप्त , अधोगति उदात्त ।

174 Views
Books from Shyam Sundar Subramanian
View all

You may also like these posts

दिव्य प्रेम
दिव्य प्रेम
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
माखन चौर
माखन चौर
SZUBAIR KHAN KHAN
दिल के दरवाज़े
दिल के दरवाज़े
Bodhisatva kastooriya
पेड़ लगाना‌
पेड़ लगाना‌
goutam shaw
यह कौनसा मोड़ आया ?
यह कौनसा मोड़ आया ?
Abasaheb Sarjerao Mhaske
रतन चले गये टाटा कहकर
रतन चले गये टाटा कहकर
Dhirendra Singh
माॅ के गम में
माॅ के गम में
Chitra Bisht
माँ का प्यार है अनमोल
माँ का प्यार है अनमोल
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
" कभी "
Dr. Kishan tandon kranti
फिर सिमट कर बैठ गया हूं अपने में,
फिर सिमट कर बैठ गया हूं अपने में,
Smriti Singh
श्री कृष्ण जन्म कथा
श्री कृष्ण जन्म कथा
मिथलेश सिंह"मिलिंद"
बेमतलब बेफिजूल बेकार नहीं
बेमतलब बेफिजूल बेकार नहीं
पूर्वार्थ
कृपाण घनाक्षरी....
कृपाण घनाक्षरी....
डॉ.सीमा अग्रवाल
अलग-थलग रहना तो उल्लुओं व चमगादड़ों तक को पसंद नहीं। ये राजरो
अलग-थलग रहना तो उल्लुओं व चमगादड़ों तक को पसंद नहीं। ये राजरो
*प्रणय*
अब बहुत हुआ बनवास छोड़कर घर आ जाओ बनवासी।
अब बहुत हुआ बनवास छोड़कर घर आ जाओ बनवासी।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
थोड़ा विश्राम चाहता हू,
थोड़ा विश्राम चाहता हू,
Umender kumar
शिक्षक दिवस
शिक्षक दिवस
ARPANA singh
*आओ-आओ इस तरह, अद्भुत मधुर वसंत ( कुंडलिया )*
*आओ-आओ इस तरह, अद्भुत मधुर वसंत ( कुंडलिया )*
Ravi Prakash
कराहती धरती (पृथ्वी दिवस पर)
कराहती धरती (पृथ्वी दिवस पर)
डॉ. शिव लहरी
फ़ासले ही फ़ासले हैं, मुझसे भी मेरे
फ़ासले ही फ़ासले हैं, मुझसे भी मेरे
Shreedhar
अहसास तेरे होने का
अहसास तेरे होने का
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
अधूरी सी ज़िंदगी   ....
अधूरी सी ज़िंदगी ....
sushil sarna
23/74.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/74.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
क्षितिज पर उदित एक सहर तक, पाँवों को लेकर जाना है,
क्षितिज पर उदित एक सहर तक, पाँवों को लेकर जाना है,
Manisha Manjari
मुझे मालूम हैं ये रिश्तों की लकीरें
मुझे मालूम हैं ये रिश्तों की लकीरें
VINOD CHAUHAN
तेवरी
तेवरी
कवि रमेशराज
नींद आती है......
नींद आती है......
Kavita Chouhan
झूठ से नफरत है सबको,
झूठ से नफरत है सबको,
Ritesh Deo
रक्त रंजित सा दिखा वो, बादलों की ओट से।
रक्त रंजित सा दिखा वो, बादलों की ओट से।
श्याम सांवरा
हायकू
हायकू
Santosh Soni
Loading...