प्रतीचि से प्राची

प्रतीचि से प्राची तक
प्रतीत
कलियुग का आगमन
विलुप्त मधुरम
कोलाहलविहीन निलयम
सब अपनी
जिंदगी को साधे
अपना बोरियाबिस्तार बाँधे
अपने जनकों से दूर
एकांत में अपने प्यार की
दुनिया बसा रहे
शीघ्र ऊब कर विच्छेद
की परिणीति पा रहे।
उनके जनक
आश्रमों में शरण पा रहे।
उनकी मौत मांगती
पनाह जिंदगी से
जिंदगी जो सीधे रास्ते
पर चल रही थी
बदल गयी वह रफ़्तार
जिंदगी की।
रखवाली बाघ कर रहा
मेमनो के बाड़े का
मौत के सब सामान
उपलब्ध है भाड़े का
दिवस में सब सो रहे
रात्रि में जागरण हो रहा
आसुरी प्रबृत्तियों का
प्रचार हो रहा
निर्मेष सत्य से परे
असत्य का ही प्रसार
सर्वत्र हो रहा।
निर्मेष