जाने क्यों

बहुत कुछ बदल देता है
समय।
भर जाते हैं
घाव
मिल जाता है
हड़बड़ी को भी
एक उचित ठहराव !
टिकने लगती हैं निगाहें
अतीत के किसी दृश्य पर!
पर…
जाने क्यों
मजबूरियाॅं और
समझौते
चिड़चिड़ाने लगते हैं
किसी अंतहीन…
अकुलाए सत्य पर
धीरे धीरे..
रश्मि ‘लहर’