पीहर गाछी ( गीत )

मायका तो स्कूल रे सखी
ससुरालय तो ऑफिस री
पली बढ़ी पढ़ी माता आंगना
धर्म कर्म आस्था विश्वासों से
कर्म ही पूजा दूजा ना कोई
भाव संस्कार सीखा सखी
स्वर्ग से उतरी मालिन वगिया
छोड़ चली थी वावुल नगरिया
छूट गयी मेरी सींची गाछियाँ
नैहर की थी पहचान री सखी
वक़्त ने छोड़ा है कब किसी को
परायी भयी अमृतमय डालियाँ
भूल ना पायी वावूल खेंतियाँ
चौंक चौराहे वट पिपलियाँ
खेल कूद शोर मचाया करती
मस्ती अल्लहड़ बढ़ती यौवन
उम्र बीत ज़रा हुई ससुरालियाँ
पर बिसरा ना पायी माई गाछी
वाग बगीचा ठाकुरवाड़ी खजूर
ताड़ मीठे बैर जामुन आम्रपाली
अनार कचनार सेव नारंगी शाखी
अमरूद की गाछी बड़ी निराली
तोड़ तोड़ खाती थी सखियाँ सारी
सभी छोड़ चली मायके की गाछी
अम्बर पर था लिखा स्वयंवर
उस घर से इस घर की गाछी
बेटियाँ तो परायी होती सखी
भूल कर भी ना भूला पातीं हूँ
भाई भतीजा जन चाची ताई
मायके नैहर पीहर की गाछी
संबंध जोड़ना तो कलाकृतियां
निभाना कठिन साधना री सखी