2122 1122 1122 22

2122 1122 1122 22
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जब हक़ीक़त से कोई पर्दा उठा देता है
एक हरक़त से यहाँ कौन भुला देता है
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आँख लगती नहीं दुनिया के ग़ुनाहों देखे
नीद मिलती ना ज़माना भी ज़गा देता है
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डर के निकला हूँ हसीनो की गली से बचते
कब मुसीबत कहीं आने की बता देता है
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डाकिया रोज दिखाई ही नहीं देता अब
उनका अहसास हमारा भी पता देता है
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रोज मिलती मुझे आसान सवारी हरदम
या मुझे पाप कमाई से बचा देता है
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सुशील यादव दुर्ग (cg)
7000226712