नई सोच
जमाना खुद नहीं बदलता
बदलता है उनसे
जो रखते है दम
उसे बदलने का
लड़ने का जमाने से
अकेले चलने का।
उन्ही के दम पे
बदलता है जमाना
नई दुनिया, नई रीत
बनाते है वही
जो सोचते है नया
वैज्ञानिक सोच से
ठानते है कुछ करने की
भरा है जुनून जिसमें
टकराने का
रूढ़िवादी परम्पराओं से।
बनानी है जिनको
ऐसी दुनियां
जो भरी हो समता से
हर हाथ को मिले काम
मिले हर एक को रोटी
ना भूख से मरता हो कोई
और ना पैसे की भूख हो
ऐसी बसे दुनिया
जो कल्पनाओं से परे हो।
ऐसी दुनियां
बनती है जिनके दम पे
जहाँ शिक्षा हो हक सभी का
ना हो ज्ञान पे कोई ताला
ना नफरत की कोई जगह
झगड़ा ना जात पात का
मजहब हो सिर्फ इन्सानियत
हो नई सुबह का आगाज
मंगलमय हो जीवन सबका।
@ विक्रम सिंह