2122 2122 2122 2

2122 2122 2122 2
वक़्त ने अपना मुझें कह के नहीं देखा
फिर शिक़ायत साथ में रह के नहीं देखा
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अज़नबी मानिंद मुझको घूरता हरदम
भावनाओं की नदी बह के नहीं देखा
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मै झ़ुकी मीनार हूँ पीसा जिसे कह लो
कुछ इरादों से डिगा ढह के नहीं देखा
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ज़िन्दगी की राह में तुम क्यों अकेली हो
सीखना था सादगी सह के नहीं देखा
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ख़ुश हुआ जाता नहीं आदत कहूँ कैसे
है दुखी ये लोग इन्हें महके नहीं देखा
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सुशील यादव दुर्ग (cg)
7000226712