12122 12122 12122 12122

12122 12122 12122 12122
रुआब मेरा नरम हुआ है , मिज़ाज़ तल्ख़ी दिखाई है अब
निग़ाह की ज़द हुए हजारो, तुम्हारी सूरत सज़ाई है अब
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कमाल था हसरतों का माना , ठहर- ठहर रास्तो से जाना
मिले मँजिल तो जरा , दुआये इसी ज़माने से पाई है अब
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निज़ात हमसे पा , दूरियां खुद से, बढ़ गई फिर हसीन लम्हा
बुझे बुझे मन किसी अँधेरे में रौशनी झिलमिलाई है अब
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मै गा सका गीत कोई , तेरे ख़याल की बंदिशे सजाए
यहाँ तो पतवार- नाव मेरी , जगह- जगह डगमगाई है अब
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कहाँ हिफ़ाजत से रख सकूँगा ज़मीन पुरख़ों की जो मिली है
ख़ुदा ने मेरे हिसाब में कुछ नरम-दिली भी बताई है अब
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मै माँगता ही रहा, ख़ुशी के हज़ार दिन, ख़्वाब में ग़िना लूँ
‘सुशील’ तेरी ये हरकतें, ज़िन्दगी की पूरी क़माई है अब
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सुशील यादव दुर्ग (cg)
7000226712