*महाकुंभ (चार राधेश्यामी छंद)*

महाकुंभ (चार राधेश्यामी छंद)
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1)
यह महाकुंभ का मेला भी, दुनिया में बड़ा अनूठा है
सौभाग्य पुण्य से मिलता है, जग का यह वचन न झूठा है
इसमें नहान संगम का है, नागाओं के भी शिविर मिले
इसमें अनंत धाराऍं हैं, सब धर्म-पुष्प भी यहीं खिले
2)
कितना भी घूमो महाकुंभ, कुछ ओर न छोर दिखाएगा
यह है अनंत विस्तार लिए, पग-पग नूतन सिखलाएगा
श्रद्धा-विश्वास धरो मन में, यह वर्ष हजारों की गाथा
अद्भुत फल वह ही पाएगा, झुक जाएगा जिसका माथा
3)
इस महाकुंभ में वन-पर्वत, तप-भूमि छोड़कर आए हैं
जो जग में कहीं नहीं जाते, रज-चरण कुंभ में पाए हैं
यदि संत मिलें तो अहोभाग्य, पर कल्पवास भी फल देगा
यह हृदय मॅंजा तो दुर्लभ फल, यह आज नहीं तो कल देगा
4)
कल चलना है तो आज चलो, जो आज चलो तो अभी चलो
जो अनुशासन में रहो अगर, जो कष्ट सह सको तभी चलो
यह भीड़ कुंभ की अलबेली, यह भीड़ कुंभ की न्यारी है
यह भीड़ भरी है भक्तों से, यह भीड़ बहुत ही प्यारी है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615 451