पदवी न काम आयेगा

पदवी न काम आयेगा
नगदी न लाभ लायेगा
तन जलेगा शमशान में
दंभ धरा रह जायेगा।
लोक लुभावन सपने भी
मोह दिखाते अपने भी
साथ रहेगें पल दो पल
संग सभी छुट जायेगा।
जी ले खुद निज मर्जी से
बुन लत्ता हो दर्जी से
भाव उधारी ले क्यों भटके
कर्जदार रह जायेगा ।।
कर्म सभी के अलग यहाँ
धर्म सदा भी जुदा जहाँ
उपमा रहे उपयोगिता
रंग तभी धुल पायेगा।।
@संजय निराला