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25 Nov 2023 · 1 min read

*परसों बचपन कल यौवन था, आज बुढ़ापा छाया (हिंदी गजल)*

परसों बचपन कल यौवन था, आज बुढ़ापा छाया (हिंदी गजल)
_________________________
1)
परसों बचपन कल यौवन था, आज बुढ़ापा छाया
धरती की यह रीति पुरानी, मरण दौड़ फिर आया
2)
बदल रहा है मौसम पल-पल, जाड़ा गर्मी वर्षा
क्रम है पतझड़ फिर वसंत का, सदियों ने दोहराया
3)
खुशकिस्मत वाले पाते हैं, आयु वर्ष सौ लंबी
जीवन का हर अनुभव गाढ़ा, सिर्फ उन्होंने पाया
4)
मरण-पाश में बॅंध जाना है, साधारण-सा किस्सा
धन्य-धन्य सॉंसों ने जिनको, अमर-तत्व समझाया
5)
क्या रक्खा है कुछ पाने में, या पाकर खोने में
जब जाता है मनुज धरा से, रहता धरा-धराया
—————————————
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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