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20 May 2022 · 1 min read

गर्म साँसें,जल रहा मन / (गर्मी का नवगीत)

गर्म साँसें,
जल रहा मन ।
चढ़ रहा
पारा,उपरितन ।

नाक ढकते,
कान ढकते,
नख बराबर
बंद हैं, पर,
दग्ध-वायु
जोर देकर
खोल देती
देह के दर ।

चिपचिपाता
स्वेद से तन ।
गर्म साँसें,
जल रहा मन ।

आँख भारी,
होंठ सूखे,
तमतमाते
गाल मेरे ।
कंठ रीता,
प्रहर बीता,
कसमसाते
बाल मेरे ।

धूप चढ़ती
घन-घनाघन ।
गर्म साँसें,
जल रहा मन ।

घर तपा
आँगन तपा है,
ताल तपता
कूप तपता ।
पंछियों के
पर तपे हैं
प्रकृति का
रूप तपता ।

गर्म राका,
तप्त उडगन ।
गर्म साँसें,
जल रहा मन ।

चढ़ रहा
पारा,उपरितन ।
गर्म साँसें,
जल रहा मन ।

000
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी

Language: Hindi
Tag: गीत
8 Likes · 10 Comments · 629 Views
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