दोहा सप्तक. . . . . कल
दोहा सप्तक. . . . . कल
कल तो कल का काल है, काल बड़ा विकराल ।
काल गर्भ में है छुपा, इच्छाओं का जाल ।।
कल में छल का वास है, कल में जीवित प्यास ।
कल में जीती जिंदगी, श्वांस – श्वांस मधुमास ।।
वर्तमान का अंश था, बीते कल का काल ।
भावी कल के काल की , समझ न आये चाल ।।
कल में कल की कामना, संभव हो साकार ।
टूटे सपनों का मगर, कहाँ मिले उपचार ।।
कल के पर्दे में तृषा, हरदम करती वास ।
इच्छाओं के बुलबुले, और बढ़ाते प्यास ।।
कल तो छलिया है बड़ा, क्या इसका विश्वास ।
पल भर में यह तोड़ता, मधुरिम मन की आस ।।
कल जीने की आस है, कल अनदेखी प्यास ।
कल सागर अभिलाष का, कल केवल आभास ।।
सुशील सरना /5-2-25