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5 Feb 2025 · 1 min read

दोहा सप्तक. . . . . कल

दोहा सप्तक. . . . . कल

कल तो कल का काल है, काल बड़ा विकराल ।
काल गर्भ में है छुपा, इच्छाओं का जाल ।।

कल में छल का वास है, कल में जीवित प्यास ।
कल में जीती जिंदगी, श्वांस – श्वांस मधुमास ।।

वर्तमान का अंश था, बीते कल का काल ।
भावी कल के काल की , समझ न आये चाल ।।

कल में कल की कामना, संभव हो साकार ।
टूटे सपनों का मगर, कहाँ मिले उपचार ।।

कल के पर्दे में तृषा, हरदम करती वास ।
इच्छाओं के बुलबुले, और बढ़ाते प्यास ।।

कल तो छलिया है बड़ा, क्या इसका विश्वास ।
पल भर में यह तोड़ता, मधुरिम मन की आस ।।

कल जीने की आस है, कल अनदेखी प्यास ।
कल सागर अभिलाष का, कल केवल आभास ।।

सुशील सरना /5-2-25

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