सोच लोगों की ,बस कयामत है

ग़ज़ल
1,,,
सोच लोगों की ,बस कयामत है ,
आज रिश्तों में भी , सियासत है ।
2,,,
नासमझ ,अब समझ ले दुनिया को ,
फिक्र करना बड़ी ज़हानत है ।
3,,,
है ये ख्वाहिश ,जमाल देखूँ अब,
बीच आती , दिखे मसाफ़त है ।
4,,,
जाने क्यूँ लोग , चुग्लियाँ करते ,
ऐसे लोगों से , मुझको नफ़रत है ।
5,,,,
चार दिन की , ये ज़िन्दगानी बस ,
गम न कर , ज़िन्दगी भी रहमत है ।
6,,,
कल यहाँ कौन , मिलने आयेगा ,
जान लो , मौत भी हक़ीक़त है ।
7,,,,
दोस्तों , ज़िन्दगी में खुश रहना,
‘नील’ ने जो लिखी , इबारत है ।
✍🏻नील रूहानी …