मेरी पहली कविता

(मेरी पहली कविता)
बसन्त
सतीश सृजन
आयु 10 वर्ष
बसन्त आ रहा है,
खुशियां मनाने वाला।
खेतों में हरी फसलें,
सरसों में फूल निकले।
गन्ने की फसल लहराए
किसान हैं हरसाये।
मधुमास कर रहा है
लोगों को मतवाला।
बसन्त आ रहा है
खुशियां मनाने वाला।
हरहों को मिला चारा,
मौसम है बहुत प्यारा।
पंछी गुनगुना रहे हैं,
कोई भेद न दिखा रहे हैं।
कोयल है होती काली,
कौआ भी काला काला।
बसन्त आ रहा है,
खुशियां मनाने वाला।
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(सन 1980में लिखी गयी पहली कविता, कक्षा ५ का विद्यार्थी था)
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हमारे काका
(पहली हास्य कविता)
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एक बार हमारे काका जी बोले हैं अपनी माता से।
माताजी हमतो खूब खाब आलू गंजी गुड़ माठा से।
तौ आजी हमारे दैउ दिहिन आलू गंजी गुड़ काका का,
यतने पै कुतिया आये पड़ी काका गोहरावै माता का।
जौ आजी हमरे न बोलिन,तऊ काका सूसू के डारिन।
अजिया आइन तऊ ई देखिन काका का धइ मारिन।
अब काका हमरे रोऊतै ही सब जाय बातें बाबा से।
एक बार हमारे काका जी बोले हैं अपनी माता से।
गुस्सा मा बाबा आय गयें दुइ डंडा मारिन आजी का।
खूब जोर आजी गरियावैं हैजा धरै ई पाजी का।
अगले दिन वैद्य जी दवा दिहिन,
जऊँन पियै है हल्दी माठा से।
एक बार हमारे काका जी बोले हैं अपनी माता से।
**(सन 1980 में लिखी गयी
मेरी पहली अवधी
हास्य कविता
उस समय मैं कक्षा ५ का विद्यार्थी था)