क्यों शोक तू मना रहा है, ऐसे उसके लिए

क्यों शोक तू मना रहा है, ऐसे उसके लिए।
जिसके दिल में नहीं है, कुछ भी प्यार तेरे लिए।।
क्यों शोक तू मना रहा है——————–।।
जिसने हमेशा तुमको, बर्बाद और बदनाम किया।
कभी खुशी तो दी नहीं, तुमको हमेशा दर्द दिया।।
क्यों अश्क तू बहा रहा है, ऐसे उसके लिए।
जिसके दिल में नहीं है, कुछ भी रहम तेरे लिए।।
क्यों शोक तू मना रहा है——————-।।
जिसके लिए तूने रिश्तें तोड़े, अपने घर और यारों से।
जिसके दामन को तूने सजाया, फूलों और सितारों से।।
उसने बहाया तेरा बहुत खूं , अपने चमन के लिए।
उसके दिल में नहीं है, कुछ भी कद्र तेरे लिए।।
क्यों शोक तू मना रहा है——————।।
वह तो मौज कर रहा है, महफिलों और महलों में।
बसा लिया उसने तो घर, किसी और के साथ फूलों में।।
क्यों इंतजार तू कर रहा है, ऐसे उसके लिए।
जिसके लबों पर नहीं है, कुछ भी दुहा तेरे लिए।।
क्यों शोक तू मना रहा है——————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)