अन्तर्मन की विषम वेदना
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
जो दिमाग़ तुमसे करवाना चाहता है वो तुम दिल से कर नहीं पाओगे,
ज्ञानी मारे ज्ञान से अंग अंग भीग जाए ।
उलफ़त को लगे आग, गिरे इश्क पे बिजली
बात हद से बढ़ानी नहीं चाहिए
नाम उल्फत में तेरे जिंदगी कर जाएंगे।
23/212. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
फर्क सिर्फ माइंडसेट का होता है
पिता
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
बस तुम्हारे ही सपने संझोते रहे।
*कहा चैत से फागुन ने, नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन (गीत)*
वृद्धिसमानिका छंद (22 मात्रा) , विधान सउदाहरण
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आखिर इतना गुस्सा क्यों ? (ग़ज़ल )
*भीड बहुत है लोग नहीं दिखते* ( 11 of 25 )
अपने ही घर से बेघर हो रहे है।
मैं नारी हूं, स्पर्श जानती हूं मैं