ग़ज़ल…
सुहाने पल तुम्हारे साथ से होते हमारे हैं
नदी बनती चलें जब साथ साथी दो किनारे हैं//1
दिलों में इश्क़ हो तो ज़िंदगी दुल्हन नज़र आए
बहारों ने गुले-गुलशन यहाँ जैसे सँवारे हैं//2
क़रीने से मिलन जो भी हुआ करता ज़माने में
मुहब्बत से शराफ़त से उसे इंसाँ निहारे हैं//3
सलीक़ा ज़िंदगी में हो गगन की राह मिल जाए
यहाँ सुंदर सभी रुत से बनें खिलते नज़ारे हैं//4
हृदय नफ़रत भरी हो तो ख़ुशी मिलती नहीं सुनलो
अँधेरे ज्यों उजालों से हमेशा दोस्त हारे हैं//5
मिली शोहरत लुटा बैठे ख़ुदी से प्यार की दौलत
हक़ीक़त दंभ के साथी जलाएँ वो अँगारे हैं//6
करे जो इश्क़ की पूजा नहीं उसको कोई ग़म हो
यही सच नेक दिल ‘प्रीतम’ सभी ख़ुशियाँ बुहारे हैं//7
आर. एस. ‘प्रीतम’