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29 Jan 2025 · 2 min read

*रामपुर रजा लाइब्रेरी के निदेशक डॉक्टर पुष्कर मिश्र जी से प्

रामपुर रजा लाइब्रेरी के निदेशक डॉक्टर पुष्कर मिश्र जी से प्रथम औपचारिक भेंट का शुभ अवसर: ‘रवि प्रकाश की हिंदी गजलें’ पुस्तक सादर भेंट की
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आज दिनांक 29 जनवरी 2025 बुधवार को रामपुर रजा लाइब्रेरी में अपनी नव प्रकाशित पुस्तक ‘रवि प्रकाश की हिंदी गजलें’ भेंट करने गया। वैसे तो पुस्तक भेंट करने की एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन इस बार पुस्तकालय के निदेशक डॉ पुष्कर मिश्र जी अपने कार्यालय में विराजमान थे, तो पुस्तक उनके हाथों में सौंपने का विचार बना और दो-चार मिनट के बाद ही निदेशक महोदय के कक्ष में मुझे बुला लिया गया। यह औपचारिक रूप से पहली भेंट थी।

निदेशक महोदय आत्मीय स्वभाव के धनी नजर आए ।पूछने लगे- “क्या लाइब्रेरी का निमंत्रण-पत्र आपके पास जाता है ?”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा कि न केवल निमंत्रण-पत्र मेरे पास लंबे समय से आ रहे हैं, अपितु मैं प्रायः सभी कार्यक्रमों में उपस्थित रहने का प्रयास भी करता हूॅं।”
मैंने उन्हें यह भी बताया कि रजा लाइब्रेरी के एक कार्यक्रम की रिपोर्ट जब मैंने फेसबुक पर प्रसारित की तो रजा लाइब्रेरी ने उसे अपनी फेसबुक पर शेयर किया था और यह मेरे लिए एक सम्मान से कम नहीं था। सुनकर निदेशक महोदय भी मुस्कुराने लगे।

मैंने उन्हें यह भी बताया कि 1986 में प्रकाशित मेरी पुस्तक रामपुर के रत्न (भाग एक) अक्सर रजा लाइब्रेरी की पुस्तक-प्रदर्शनी में देखने को मिल जाती है।

गजल संग्रह के पन्नों को उलटते-पुलटते हुए गजल संख्या दो को उन्होंने विशेष दिलचस्पी के साथ देखा। इससे पहले पुस्तक की विषय सूची में गजलों की एक-एक पंक्ति दी गई थी। विषय सूची की दस-बारह गजलों के शीर्षकों को उन्होंने रुचिपूर्वक उच्चारण करते हुए पढ़ा।

मेरा हृदय उस समय गद्गद हो गया, जब पुस्तक के प्रष्ठों को पलटते समय गजल संख्या दो के शीर्षक को निदेशक महोदय ने विशेष रुचि दर्शाते हुए पढ़ा। आश्चर्य जनक रूप से उन्होंने इस गजल के सभी पॉंच शेर पढ़कर स्वयं को सुनाए। इन्हें उनके श्रीमुख से सुनना मेरे लिए एक रोमांचकारी अनुभव था। आखिरी शेर पर उन्होंने अपनी प्रशंसा व्यक्त की। कहा, बहुत अच्छा लिखा है।
शेर इस तरह है :

उन्हें मालूम है उड़कर कभी वापस नहीं आते
परिंदे अपने बच्चों को मगर उड़ना सिखाते हैं

निदेशक महोदय से भेंट दस मिनट से कुछ कम की हुई। अधिक समय न लेते हुए मैंने स्वयं अपनी पहल पर उनसे विदा चाही। उनके शब्द थे- “आते रहा करिएगा”

”रवि प्रकाश की हिंदी गजलें’ पुस्तक निदेशक महोदय को सौंप कर उन्हें प्रणाम करके मैं उनके कार्यालय से चलकर घर आ गया। पुस्तकालय से मेरे घर की दूरी मुश्किल से पॉंच मिनट की पैदल की है।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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साहित्यपीडिया पब्लिशिंग, नोएडा द्वारा प्रकाशित

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