प्यार से जो है आशना ही नहीं

प्यार से जो है आशना ही नहीं
ज़ीस्त का उसको तजरुबा ही नहीं
ख़्वाब से जुड़ चुका है इस दरजा
दिल हक़ीक़त को मानता ही नहीं
राब्ता इस तरह रखा उसने
जैसे हमको वो जानता ही नहीं
कैसे पाएगा प्यार की मंज़िल
इश्क़, जो इश्क़ मानता ही नहीं
मुश्किलें लाख पेश आएं मगर
हौसला दिल ये हारता ही नहीं
हिफ़्ज़ हम सबको हो गए शायद
अब हमें कोई भूलता ही नहीं
जब से हम खो गए हैं दुनिया में
अब हमें कोई ढूंढता ही नहीं
जब से ऐ “शाद” उनको देखा है
फिर किसी सिम्त दिल गया ही नहीं
डॉ० फ़ौज़िया नसीम “शाद