कुछ इस तरह टूटा है

कुछ इस तरह से टूटा है दिल अपना।
हबीब दिल का बना क़ातिल अपना।
नाखुदा ही जब छोड़ गया मझधार में
न कश्ती मिली ,न ही साहिल अपना।
क्यों बार बार हम यकीं करते हैं उसपे
कैसा मिला हमें दिल जाहिल अपना।
धोखा देने वालों को जान ले ये पहले
पहचानने में दिल रहा नाकाबिल अपना।
लगे हैं जहां में वैसे खुशियों के मेले
मगर हर ग़म में रहा दिल शामिल अपना।
सुरिंदर कौर