आया यह मृदु - गीत कहाँ से!
रिसाय के उमर ह , मनाए के जनम तक होना चाहि ।
अपनी आंखों को मींच लेते हैं।
हिन्दी भारत का उजियारा है
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
अतीत का पन्ना पलटकर देखने से क्या होगा.. (ग़ज़ल)
तेरी आंखों की बेदर्दी यूं मंजूर नहीं..!
सत्य क्या है ?
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
प्रेम गजब है
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
कितनी गौर से देखा करती हैं ये आँखें तुम्हारी,
साँवलें रंग में सादगी समेटे,
गमों के साथ इस सफर में, मेरा जीना भी मुश्किल है
जो है दिल में वो बताया तो करो।
जग कल्याणी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
चुरा लेना खुबसूरत लम्हें उम्र से,