जीवन समीक्षा

जीवन के इस पथ पर अनवरत बढ़ता रहा ,
कभी दुःख संतप्त क्षण आये कभी सुख तृप्त हुआ ,
अपनों के साथ छूट जाने का विषाद ,
तो कभी प्रियजन मिलन हर्ष अनुभूत हुआ ,
इस दुर्गम पथ पर धैर्य की डोर थामे आगे बढ़ता रहा ,
भय एवं हताशा की मानसिक दुर्बलता को
संकल्प पर हावी न होने दिया ,
आशा स्पंदित एक किरण हृदय में
सदैव जगाये रहा ,
कर्मप्रधान भविष्य निर्माण की मनोवृत्ति पर
विश्वास रखा ,
असफलता पर कुंठित न होकर
त्रुटि निराकरण प्रयत्नशील रहा ,
व्याप्त दुर्भावनाओं एवं प्रपंचों से निरापद रहकर
सद्भावना संस्कार युक्त रहा ,
प्रतिशोध- भाव का तिरस्कार कर
क्षमा- भाव युक्त हुआ ,
छद्म , मिथ्याकथन एवं लोभ – भाव को
अंतस पनपने न दिया ,
संकटों का सामना अविचिलित
पुरुषार्थ संपन्न हो किया ,
सर्वधर्म समभाव एवं मानव – धर्म सर्वोपरि का
प्रचार-प्रसार किया ,
परमपिता परमेश्वर के अस्तित्व पर आस्थावान रहकर ,
सार्थक जीवन-निर्वाह का पालन किया।