पता नहीं क्यों,

पता नहीं क्यों,
तुम्हें एक बारगी छू लेने,
जी भर कर,
सीने में समेट लेने की इच्छा,
मरती जा रही है।
—
पता नहीं क्यों,
तुमसे मिलकर
तुम्हारे बारे में जानने की,
अपने बारे में कहने की,
तमन्ना सुन्न हो रही है।
—
पता नहीं क्यों,
तुम मेरे लिए
अनजाने ही रह जाओगे,
और मैं तुम्हारे लिए;
जबकि सच यह है कि,
मैं बहुत कुछ हूँ
तुम्हारे वास्ते,
तुम बहुत कुछ हो,
मेरे लिए, किंतु
हम एक-दूसरे को,
अंश मात्र भी न जान सके, और,
कहानी का पटाक्षेप करीब है;
पता नहीं क्यों।