संस्कृति लोप की जांच पड़ताल

संस्कृति का लोप, हुआ अतीत में,
निज स्वाधीनता, अब निष्प्राण हुई
कैसा फर्ज था, निभाया नृप ने,
युवा बल पौरुष भी मसाण हुई..
कार्य उनके संस्कार रहित थे,
सब जन भारत,उन्हें चाचा कहते थे
स्वाभिमान की लाश,कंधें पर लेकर,
आप स्वारथ कार्य सदा करते थे..
काला कोट लालपुष्प सुशोभित,
मुखमंडल स्याह,धुम्रपान का धूंआ
उनके व्यसनों से आहत था भारत,
बना है अब देखो, दुख दर्द का कुंआ..
फटी जिंस पहनती है बालाएं,
धन वैभव भी लाचार हुई
प्रबल फौलाद नवयुग भुजबल,
बुरे व्यसनों का शिकार हुई..
कहाँ गया, वो सुबह की बेला !
सुत उठकर, करते थे प्रणाम
ना मातु पिता अनुराग हृदय,
ना वक्त को हैं, देते आयाम..
मंदिर मठ धन, हड़पा नृप ने,
ट्रस्ट न्यास आधिपत्य किया
दिल-ओ-दिमाग में सनातन द्वेष भरकर,
जीवन मूल्यों का सत्यानाश किया..
कवि-लेखकगण को नहीं थी चिंता,
मुकुट पद्मश्री पाकर खुश दिखते..
अब कहते हैं, उनके भी बच्चे,
ये मेडल, क्यों नही हैं बिकते..
सोचा था क्या, कभी भी उसने,
एक संत कवि भी बिलखेंगे
बच्चे उनके जब देंगे ठोकर,
तो वृद्धाश्रम में वो दम तोड़ेंगे..
उपनिषदों की करी थी विवेचना,
बच्चों ने रहबर ये किया
छोड़ो घर और चलो वृद्धाश्रम,
आराम बहुत, तूने है किया..
सारा जग अब वाकिफ है,
नाम था उसका खंडेलवाल
रोती है अब काशी की गलियां,
क्या सीख रहा है नौनिहाल..
मृत शरीर चिता पर लेटा ,
मणिकर्णिका घाट लगा रोने
स्नेह सुत कोई पास नहीं आया,
जब उनको मुखाग्नि देने..
पूरा भारत स्तब्ध चित्त था,
सनातन की यह गति कैसी
कैसी ये सब विडंबना है,
आज युवा की मति कैसी..
सत्ता सुरक्षित करना जो था,
शिक्षा नीतियां भी वैसी बनी
शिक्षा प्रणाली एकतरफा कर,
हिन्दुत्व नीति अवरुद्ध करी..
लाया होता सुषम शिक्षा प्रणाली,
ओजस्वी आज भारत होता
नचिकेता और श्रवण कुमार सा,
नैतिकता निहायत होता…
आजाद हुई जब वतन हिंद,
संस्कार मूल्य न, भारत को मिला
मिटा था क्या, अस्तित्व सनातन,
वजीर भी,अरब फारस का मिला..
छोड़ कर के बस सनातन शिक्षा,
बाकी धर्म किए कट्टरपंथी के उपाय
रोक लगा बस रामायण गीता,
बाकि ग्रंथ झूल झूल कर रटवाये..
प्रतीक चिह्न था संविधान पृष्ठ में,
आगे न वो चिन्ह, कभी आने पाया
इतनी घृणा थी मन में भरी जो,
राम कृष्ण महावीर तस्वीर हटाया..
संस्कार जनित वे स्मृति पुरुषोत्तम,
संस्कृति के सनातन चिन्ह होते थे
जिसे देख कर,सारे जग जन को,
कर्तव्य एहसास खुद के होते थे..
अलख जगाने आया हूं मैं,
सबको ही जगाकर जाऊँगा
मंशा क्या थी, अतीत में उनकी,
भविष्य बतला कर जाऊँगा..
संस्कृति लोप का कारण क्या है,
क्या है इसकी लय और ताल
हर भारतवासी को पूरा हक है,
करे न इसकी जांच पड़ताल..
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २१/०१/२०२५
माघ ,कृष्ण पक्ष, सप्तमी तिथि, मंगलवार
विक्रम संवत २०८१
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