संसार का वर्तमान और भविष्य ‘दर्शनशास्त्र’ की शरण में आने से ही सुरक्षित और संरक्षित (The present and the future of the world is safe and protected only by taking refuge in ‘Philosophy’)

समस्त संसार में सर्वप्रथम जिज्ञासा,प्रश्न,तर्क,चिंतन, विचार और युक्ति करने के प्रमाण ऋग्वेद के ‘नासदीय सूक्त’, ‘ पुरुष सूक्त’, ‘हिरण्यगर्भ सूक्त’ आदि में उपलब्ध होते हैं!युनानी, रोमन, चीनी आदि सभ्यताओं में यह प्रवृत्ति बहुत बाद में देखने को मिलती है! चारों वेद ज्ञान- विज्ञान- पहचान के सर्वप्रथम ग्रंथ हैं! संसार में मानव प्राणी में दो प्रकार की प्रवृतियाँ सामान्यतः मौजूद रही हैं!पहली है ‘जानना’ और दूसरी है ‘मानना’!इन दोनों के मध्य मानव प्राणी जीवन यापन करता है! जानने वाले व्यक्ति जिज्ञासा, प्रश्न, तर्क, विचार और चिंतन प्रधान होते हैं तथा मानने वाले लोग विश्वास, आस्था, भक्ति और समर्पण प्रधान होते हैं! केवल तर्क करने वाले व्यक्ति का नास्तिक हो जाने का खतरा है केवल विश्वास करने वाले व्यक्ति का पाखंडी हो जाने का खतरा है! इन दोनों प्रवृतियों में संतुलन साधने से मानव प्राणी का जीवन सांसारिक रुप से समृद्धि तथा आध्यात्मिक रुप से आनंदमय हो जाता है! अध्यात्म और विज्ञान अपने अपने ढंग से जड चेतन जगत् पर कार्य करते आ रहे हैं! कभी तर्क का तराजू भारी हो जाता है तो कभी विश्वास का तराजू भारी हो जाता है! दर्शनशास्त्र एक ऐसा विषय है जोकि तर्क और विश्वास, विज्ञान और अध्यात्म, पदार्थ और चेतना, इहलोक और परलोक, प्रवृत्ति और निवृत्ति,संसार और मोक्ष में संतुलन साधकर इस धरती को खुशहाल और आनंदमय बना सकता है! आज का युग पदार्थ- प्रधान विज्ञान -प्रधान होते हुये भी मजहबी पाखंड, ढोंग, शोषण और अंधविश्वास से प्रदुषित है! ऐसी विषम स्थिति में विज्ञान और अध्यात्म दोनों को सत्यपथ पर लाने का कार्य केवलमात्र दर्शनशास्त्र विषय ही कर सकता है! सर्वप्रथम वेदों द्वारा प्रदत्त तथा आज से पांच हजार वर्ष पूर्व षड्दर्शनशास्त्र द्वारा जिज्ञासा, तर्क, विचार, चिंतन और युक्ति के द्वारा सृष्टि के मूल में कार्यरत छह कारणों की व्याख्या करने का जो कार्य किया गया था,समस्त संसार को इनके अध्ययन, अध्यापन, शोध और प्रचार- प्रसार की आवश्यकता है!चमत्कारी वैज्ञानिक विकास और आध्यात्मिक भुलभूलैया तथा शुष्क चिंतन और कोरे विश्वास के मध्य में पिस रहे मानव प्राणी को सही रास्ता बतलाकर उसके जीवन में चहुंमुखी खुशहाली लाने में दर्शनशास्त्र विषय समर्थ है! लेकिन यह कार्य केवल शुष्क चिंतन पर केन्द्रित पाश्चात्य फिलासफी से संभव नहीं है! इसके लिये संसार के समस्त जिज्ञासुओं, दार्शनिकों, विचारकों, चिंतकों और तार्किकों को सनातन भारतीय दर्शनशास्त्र की शरण में आना ही होगा!यह आज की जरूरत है!
समस्त विषयों के माता- पिता ‘दर्शनशास्त्र’ विषय को महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की संकीर्ण चारदीवारी से निकालकर इसे लोकोन्मुख बनाने की आज सर्वाधिक जरूरत है! यह कार्य महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के तनख्वाहभोगी शिक्षकों द्वारा नहीं हो सकता है! यदि ऐसा होना संभव होता तो कब का हो गया होता! इन्होंने तो इस विषय को मृतप्राय: बनाने में कोई कमी नहीं छोड रखी है!तनख्वाह के बल पर उदरभोगी, सुविधाभोगी और ‘मैं तेरा समर्थन करता हूँ, तू मेरा समर्थन करना’ जीवनशैली के शिक्षकों ने इस विषय का बहुत अधिक अहित किया है! ऐसे मुफ्तभोगी निठल्ले शिक्षकों के कारण ही हमारे नेता लोग,अन्य संकायों के वरिष्ठ शिक्षक तथा शिक्षा संस्थानों के प्रशासकों को यह प्रचारित करने को विवश कर दिया है कि दर्शनशास्त्र विषय का बेकार का विषय है, इसका कोई वर्तमान और भविष्य नहीं है, मानव जीवन में इसकी कोई उपयोगिता नहीं है, इस विषय में कोई रोजगार नहीं हैं तथा इस विषय को पढकर अपना जीवन खराब मत करना! बाहरी दुश्मनों ने नहीं अपितु बाड ने ही खेत को खाया है! अपनी नौकरी सुरक्षित रहे, बाकी जाये भाड में!
आज के संसार में आर्थिक विषमता की खाई सर्वाधिक है! गरीब लोग एक इंजैक्शन तक नहीं लगवा सकते हैं तो दूसरी तरफ अमीर लोग चिकित्सा के लिये एक दिन में लाखों रुपये खर्च कर देते हैं! करोड़ों लोगों को दो वक्त का भोजन उपलब्ध नहीं है तो अमीर लोग एक दिन के भोजन पर कई- कई हजार रुपये खर्च कर देते हैं!गरीब लोगों के पास बच्चों की शिक्षा के लिये मासिक फीस के भी रुपये नहीं हैं तो दूसरी तरफ अमीर लोग अपने बच्चों को लाखों करोड़ों रुपये खर्च करके देश विदेश के महंगे शिक्षा संस्थानों में पढाते हैं! भारत की हालत दुनिया में सर्वाधिक खराब है लेकिन नेता और धर्मगुरु भारत को विश्वगुरु बनाने के नारे दे रहे हैं! विश्वगुरु की फीलिंग मात्र कुछ करोड़ भारतीयों तक सीमित है! 2017 के दौरान अमीर लोगों की संपत्ति 73 गुना बढी थी तो 75 करोड़ आबादी की आमदनी सिर्फ एक प्रतिशत बढी! जीएसटी एकत्र करने का 64 प्रतिशत हिस्सा 50 प्रतिशत गरीब आबादी से था, तो 4 प्रतिशत हिस्सा 10 प्रतिशत लोगों से और अमीर लोगों से सिर्फ 4 प्रतिशत जीएसटी एकत्र हुआ था! मध्यमवर्गीय लोग उधार के रुपये से जीवन जी रहे हैं! भारत में जो बडे बडे फ्लाईओवर,हाईवेज,भवन, कार्यालय, ओवरब्रिज आदि बनाये जा रहे हैं, वो विकास के लिये कम तथा कमीशन खाने के लिये अधिक बनाये जा रहे हैं! विभिन्न मेलों,उत्सवों,पर्वों, जयंतियों,सैमिनारों, गोष्ठियों,कांफ्रेंसों,गंगा और सरस्वती आदि नदियों की सफाई,गीता जयंती, शिक्षा संस्थानों में चेयर आदि खोलने तथा महामारियों की रोकथाम आदि की आड़ में सैकड़ों – सैकड़ों करोड़ रुपये के बजट को नेता, अधिकारी, ठेकेदार, ईंजीनीयर आदि हज्म करके डकार तक नहीं मारते हैं!भारत की अधिकांश आबादी तक उस द्वारा सरकार को दी गई जीएसटी का थोड़ा सा भी अंश खर्च नहीं होता है!एक बार की विधायकी, सांसदी और पुलिस एसएचओ, डीएसपी,एसपी का कोई विशेष स्टेशन या जिला प्रदान करने के एवज में 200-400 करोड़ रुपये इधर-उधर हो जाते हैं! जनसाधारण को तो इसकी भनक तक लगने नहीं जाती है!
यदि जनमानस के नित्य प्रति के जीवन में विश्वास,आस्था, भक्ति आदि के साथ में तर्कयुक्त जिज्ञासा, चिंतन, विचार और संदेह करने की योग्यता मौजूद हो तो वह जनमानस अवश्य ही नेताओं, धर्मगुरुओं और नीति -निर्माताओं की उपरोक्त लूटवादी नीतियों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उसका विरोध करता! केवल इसीलिये भारत के ये तथाकथित सर्वेसर्वा लोग जनमानस को तार्किक,संदेहवादी और चिंतनपूर्ण होने से रोकता आया है!भारत में यह प्रवृत्ति पिछली कुछ शताब्दियों में अधिक प्रचलित हुई है! जनमानस का तार्किक होना सदैव से लूटेरे और शोषक नेताओं, धर्मगुरुओं ,नीति- निर्माताओं और अमीर घरानों की दुकानदारी के लिये खतरनाक बनता आया है!पिछली दो सदियों के दौरान महर्षि दयानंद सरस्वती, आचार्य रजनीश और राजीव भाई दीक्षित जैसे महापुरुषों ने जनमानस को तार्किक बनाने का भरपूर प्रयास किया है! लेकिन उनके साथ हमने जो दुर्व्यवहार किया, उसको सारा भारत जानता है!
सनातन धर्म, संस्कृति, दर्शनशास्त्र, विज्ञान, अध्यात्म और वेदों पर छाये हुये पाखंड, ढोंग और व्यापार के बादलों को तीतर बीतर करने के लिये आजकल महत्वपूर्ण कार्य आचार्य अग्निव्रत जी कर रहे हैं! आपने साढ़े सात हजार वर्ष पुराने महिदास के ग्रंथ एतरेय ब्राह्मण तथा साढ़े पांच हजार वर्ष पुराने यास्क के ग्रंथ निरुक्त की विस्तृत व्याख्याएँ करके सनातन धर्म,संस्कृति,दर्शनशास्त्र, अध्यात्म और योग के अनेक रहस्यों को खोलने की चाबी प्रदान कर दी है! भौतिक विज्ञान के लिये भी आपने आगामी 100 वर्षों तक रिसर्च करने की सामग्री प्रदान कर दी है!आपने वेदों,निरुक्त और षड्दर्शनशास्त्र को पारंपरिक अध्यात्मशास्त्र,ज्ञानशास्त्र, नीतिशास्त्र, तर्कशास्त्र,सौंदर्यशास्त्र से आगे बढकर क्वांटम फिजीक्स, कोस्मोलाजी,एनालिटिकल फिलासफी, कलाशास्त्र,शास्त्रीय संगीत,मंत्रशास्त्र, छंदशास्त्र, ध्वनिशास्त्र, बायोमैडिकल इथिक्स,बिजनैस इथिक्स, इन्वायरमैंटल इथिक्स आदि से जोड दिया है! लगता है कि आचार्य अग्निव्रत जी वास्तव में सनातन भारत के पुरातन वैभव को जीवित करके विश्वगुरु बनाने का कार्य कर रहे हैं! बाकी लोग तो सिर्फ भारत को विश्वगुरु बनाने की थोथी डींगें ही मार रहे हैं! धरातल पर कोई भी कार्य करने के लिये उत्सुक नहीं है!उनके ग्रंथों के अध्ययन से मुझे लगता है कि दर्शनशास्त्र विषय के शिक्षक, शोधार्थी और छात्र काफी कुछ सीख सकते हैं! दर्शनशास्त्र विषय को धरती से जोडकर उसे लोकोपकार हेतु तैयार करने में काफी मदद मिल सकती है!
दर्शनशास्त्र विषय निर्णय करने की योग्यता प्रदान करने के साथ साथ दूरगामी परिणामों पर पहुंचने में मदद करता है!यह योग्यता विज्ञान,धर्म, अध्यात्म,नीति, योग, राजनीति, खेतीबाड़ी, शिक्षा, व्यापार, प्रबंधन आदि हरेक क्षेत्र में लाभकारी है!उपरोक्त सभी क्षेत्रों से पाखंड, ढोंग, लूट, शोषण और भेदभाव को समाप्त करने का कार्य केवलमात्र दर्शनशास्त्र विषय ही करने में समर्थ है! आजकल के लोकप्रिय सोशल मीडिया,एआई,चैट जीपीटी,दूरसंचार, टीवी चैनल्स,सिनेमा, विज्ञापन आदि से उत्पन्न अवचेतन मन को सम्मोहित करके जनमानस को बेवकूफ बनाने के षड्यंत्र से छूटकारा दर्शनशास्त्र विषय दिलवा सकता है! क्योंकि यह विषय बिना सोच- विचार, चिंतन, तर्क, जिज्ञासा और संदेह के केवल मानने, अंधविश्वास करने और किसी की अंधभक्ति करने से रोकने में मदद करता है!विज्ञान, तकनीकी,समाज विज्ञान, वाणिज्य, प्रबंधन, चिकित्सा,विधि, भाषाविज्ञान, अध्यात्म, खेलकूद, खेतीबाड़ी, मानविकी आदि विषयों का सैद्धांतिक पक्ष मूलतः दर्शनशास्त्र ही है!
वास्तविकता तो यह है कि समकालीन आधुनिक वैज्ञानिक युग में जीवन और जगत् के हरेक क्षेत्र में कार्यरत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दर्शनशास्त्र विषय के अंतर्गत मौजूद तर्क, चिंतन,विचार, जिज्ञासा, संदेह और प्रश्न उठाने आदि की मदद लेते हैं लेकिन दर्शनशास्त्र विषय के महत्व को स्वीकार करने से हिचकते हैं! लोगों के व्यवहार को समझने,डार्क साईकोलाजी,काउंसलिंग, लाईफ स्किल प्रशिक्षण, कंपनी सलाहकार,पत्रकारिता, साहित्य, लेखन,नेतागिरी, कथा-वाचन,योग-प्रशिक्षण, वैज्ञानिक शोध आदि प्रत्येक क्षेत्र में दर्शनशास्त्र विषय की भूमिका मौजूद है!
और तो और आजकल के मोटीवेशनल स्पिकर,प्रवचनकार,सत्संग, भजन संध्या, जागरण आदि करने वाले लोग भी श्रोताओं और दर्शकों की मानसिकता को समझने के लिये दर्शनशास्त्र विषय की युक्तियों का प्रयोग धडल्ले से करते हैं!कहने का आशय यह है कि जीवन और जगत् के हरेक क्षेत्र में इस विषय की प्रासंगिकता, उपयोगिता, महत्ता, लाभ और मार्गदर्शन मौजूद है!
आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119