मौका भी है, मौसम भी है, दस्तूर भी है,

मौका भी है, मौसम भी है, दस्तूर भी है,
तन्हा हैं रातें, मगर उनका सुरूर भी है।
बे-सबब तो शायरी, हुआ करती नहीं,
कई नज़्मों की वजह, उनका नूर भी है।
मेरे कलाम पढ़ने वालों को लगता है,
शायर, मोहब्बत के नशे में चूर भी है।
उस हसीं के बारे में, बे-जा कहते हैं लोग,
उसे अपने हुस्नो-शबाब पे, गुरूर भी है।
हो सेहत ना-साज़, दिक्कतें हजार माना,
दिल,रूमानी ग़ज़लें कहने को मज़बूर भी है।
हर मौसम, हर हाल, आशिक़ी ज़िंदाबाद,
जो इश्क़ में बदनाम है, वही मशहूर भी है।