जैसे निरंतर बहता हुआ समय किसी दिन लौट आता है अपने प्रथम बिंद

जैसे निरंतर बहता हुआ समय किसी दिन लौट आता है अपने प्रथम बिंदु पर !
जैसे बहता हुआ सूरज उग आता है पूर्वा से प्रत्येक प्रातः
वैसे ही बिल्कुल वैसे ही – तुम भी लौट आओ ना ‘लड़की “मेरे मनमंदिर की देहरी पर दिया जलाने ! मैं प्रतीक्षा में हूं !🖤”
___
#तुम्हारी_याद