शक्ति
हे शक्ति
अस्तित्व भी तुम
आभास भी तुम
सकल जगत का उद्भास भी तुम
जड़़ भी तुम
चेतन भी तुम
जड़ चेतन का अभिलास भी तुम
आदी बिंदु से
प्राकट्य अनंत का
सकल वरिमा का अधिवास भी तुम
युति भी तुम
गति भी तुम
उत्सर्जन और लयाकाश भी तुम
जननी तुम
काल भी तुम
अनंत ब्रम्हांड आकाश भी तुम
नियति नटी का
संधारण संचालन
नर्तन और लवलास भी तुम
उत्पत्ति का
और विनाश का
पुरा-नवल इतिहास भी तुम
सूक्ष्म जगत में
विशाल अगत में
गुप्त चित्रमय परिवास भी तुम
देख तुम्हारा महालास्य, चकित हुआ अभिभूत हुआ।
वाणी बनकर अभिव्यक्ति संचना, अंकुर सा उद्भूत हुआ।।