*आत्मचिंतन*
आत्मचिंतन
जब ‘मनु’ रूपी मन और ‘श्रद्धा’ रूपी हृदय के बीच ‘इड़ा’ रूपी बुद्धि आ जाती है तो प्रेम की सुचिता और इष्ट के प्रति समर्पण समाप्त हो जाता है। (प्रेरणा ग्रंथ-कामायनी)
©दुष्यन्त ‘बाबा’
आत्मचिंतन
जब ‘मनु’ रूपी मन और ‘श्रद्धा’ रूपी हृदय के बीच ‘इड़ा’ रूपी बुद्धि आ जाती है तो प्रेम की सुचिता और इष्ट के प्रति समर्पण समाप्त हो जाता है। (प्रेरणा ग्रंथ-कामायनी)
©दुष्यन्त ‘बाबा’