दोहा पंचक. . . . जीवन एक संघर्ष
दोहा पंचक. . . . जीवन एक संघर्ष
जब तक तन में श्वास है, करे जिंदगी जंग ।
कदम – कदम पर जंग के, दिखलाती वह रंग ।।
दो रोटी को जिंदगी, करे सदा संघर्ष ।
बने कभी यह वेदना, कभी बने यह हर्ष ।।
करे संघर्ष जिंदगी, जीवन के हर द्वार ।
रहे अबूझी ही सदा, मौन मधुर झंकार ।।
चार घड़ी के बाद ही, बीता नूतन वर्ष ।
अविरल करती जिंदगी, जीने का संघर्ष ।।
नित्य करे यह जिंदगी, एक नया संघर्ष ।
इसके हर संघर्ष में, छुपा नया उत्कर्ष ।।
सुशीलसरना / 12-1-25