स्वान की पुकार/ svaan ki pukar by karan Bansiboreliya
स्वान की पुकार/ Svaan ki pukar
By Karan Bansiboreliya (kb shayar 2.0)
चाह नहीं अब मेरी के,
स्वान का जीवन पाऊं मैं..!
दर दर भटकूं सड़कों पे,
कोई गाड़ी के नीचे आऊं मैं..!
कोई मारे डंडा, कोई मारे पत्थर,
बिन मौत क्यों मर जाऊँ मैं..!
बना हुआ हूं रखवाला घर का,
चीख चीख कर सब को बताऊं मैं..!
गलती हो या न हो मेरी,
न जाने हर बार मार क्यों खाऊं मैं..!
चाह नहीं अब मेरी के,
स्वान का जीवन पाऊं मैं..!
दर्द जाकर अपना लोगों को,
अब कैसे बताऊं मैं..!
चाह नहीं है अब मेरी,
किसी राजा के पास जाऊं मैं..!
मिलता नहीं खाना कहीं से,
भौंक भौंक कर बताऊं मैं..!
यही तो है काम मेरा क्यों,
सिरदर्द लोगों का बन जाऊं मैं..!
अगर कोई आ जाए शत्रु,
पूरे नगर को जगाऊं मैं..!
मालिक को मेरे कैसे,
वफादारी अपनी बताऊं मैं..!
एक खरीदे,एक बेचे,
हर एक का बन जाऊं मैं…!
चाह नहीं अब मेरी के,
स्वान का जीवन पाऊं मैं..!
अगर उतारे नजर कोई,
काल भैरव का रूप बन जाऊं मैं..!
सरकारी विभागों की यातना से,
खुद को कैसे बचाऊं मैं..!
उपकरण नहीं कोई जीव हूं
कैसे सब को बताऊं मैं..!
चाह नहीं अब मेरी के,
स्वान का जीवन पाऊं मैं..!
हे भाग्य विधाता ये है मेरी पुकार,
धरती पर मचा है हा हा कार..!
जीवन देने वाले देना मेरा साथ,
सुन लो पुकार मेरे पशुपति नाथ..!
खुद के तन को दोबारा,
कभी न पाना चाहूं मैं…!
चाह नहीं अब मेरी के,
स्वान का जीवन पाऊं मैं..!
© Karan Bansiboreliya (Kb shayar 2.0)
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