बेढंगें लोग
देश के एक कोने में
एक सुन्दर सा था गाँव बसा
प्रगति के पथ पर बढ़ रहा था
नित नए इतिहास गढ़ रहा था
फिर एक परिवर्तन आया
लहरों का एक सैलाब लाया
बह गए जो ढंग के लोग थे
रह गए जो बेढंगे लोग थे
गांव फिर से उठ खड़ा हुआ
नाम गांव का फिर बड़ा हुआ
पर बढ़ न पाया प्रगति पर
पा न पाया उन्नति का वो स्तर
बेढंगों ने किया अब काम शुरू
ढंगों का दिल अब हुआ अरु
फिर गिरे धरा पर आकर के
लग गए वो लड़ने जाकर के
दी जिम्मेदारी जिसको थी
सब लोग वो बेढंगें निकले
थे जो ढंग के लोग वहां
वो सब पागल हो निकले