नच ले,नच ले,नच ले, आजा तू भी नच ले
ग़ज़ल _ मुसाफ़िर ज़िंदगी उसकी , सफ़र में हर घड़ी होगी ,
*किसी को राय शुभ देना भी आफत मोल लेना है (मुक्तक)*
मोहब्बत का कर्ज कुछ यूं अदा कीजिए
सोना ही रहना उचित नहीं, आओ हम कुंदन में ढलें।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
रमेशराज की गीतिका छंद में ग़ज़लें
मुक्तक - वक़्त
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
क्यूँ जुल्फों के बादलों को लहरा के चल रही हो,
क्या कहुं ऐ दोस्त, तुम प्रोब्लम में हो, या तुम्हारी जिंदगी
विद्वत्ता से सदैव आती गंभीरता