जो शिद्दत है एहसासों में
जो शिद्दत है एहसासों में
वही नजरों को मयस्सर होगी
दुआ ले लो जो अपनो का
वही तेरा फिर मुकद्दर होगी
क्यों उलझे हो तुम
इन हाथों की लकीरों में मुद्दत से
फैलाओ रूह तलक जमीं अपनी
ताबिश तुमको मु’अत्तर होगी
मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कर्ण
कटिहार (बिहार)