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17 Dec 2024 · 7 min read

प्रेम और करुणा: समझ और अंतर। ~ रविकेश झा।

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप लोग आशा करते हैं कि आप सभी अच्छे और पूर्ण स्वस्थ होंगे, अभी ठंडी का मौसम शुरू हो गया है हमें स्वयं को ध्यान रखने की आवश्कता है। हम सब प्रतिदिन जीवन जीते हैं उल्लास उमंग के साथ जीवन को जीते हैं फिर भी हम प्रेम करुणा में नहीं उतर पाते हैं। हम जीवन को जटिल बनाते चले जाते हैं क्योंकि हमारे जीवन में प्रेम करुणा का अभाव होता है इसी कारण हम जीवन में बुद्धिमत्ता को चुनते हैं और जीवन को घिसते रहते हैं ताकि कैसे भी कामना इच्छा पूर्ण होते रहे लेकिन हमें सोचना चाहिए जो हमारा स्वभाव है हम उसी से भागते हैं लोग हमें पागल कहते हैं यदि हम किसी के प्रेम में पड़ जाएं लोग अक्सर आंख खोलकर देखते हैं जैसे प्रेम करना गुनाह हो गया। हम बहुत से कारण से मुंह मोड़ लेते हैं लोग क्या कहेंगे उनको अच्छा नहीं लगेगा ऐसे में व्यक्ति स्वयं को तबाह करने लगता है त्याग की भावना पैदा होती है और हम भागने में मन बना लेते हैं, दमन करते हैं मन भर जाता है जब ही हम कुछ दमन कर्नेगे हम कामना के लिए आतुर होंगे हम नीचे के तरफ़ बढ़ेंगे क्योंकि जो आप सोचते हैं वह कहीं जाता नहीं है वह ऊर्जा में रूपांतरण हो जाता है फिर मन में इच्छा पैदा होता है, ऐसे में हमें स्वयं को देखना चाहिए हम पूरे दिन करते क्या हैं या तो हम कामना में रहेंगे या करुणा में दो ही चीज़ पूरे दिन हम करते हैं। लेकिन बहुत लोग करुणा भय या कामना के इच्छा करते हैं हृदय का कुछ पता नहीं बस ऊपर से दया प्रेम दिखाते हैं ताकि उनका कुछ कामना पूर्ण हो जाए। हमें भावना को समझना चाहिए भावना को जानेंगे तभी हम भावना से परे जा सकते हैं। आज बात कर रहे हैं प्रेम और करुणा के बारे मे आखिर प्रेम करुणा क्या है दोनों में क्या अंतर है ये प्रश्न बहुत के मन में आता होगा लेकिन हम उत्तर खोजने के बजाय प्रश्न में ही अटके रहते हैं तो चलिए बात करते हैं प्रेम और करुणा के बारे में।

प्रेम और करुणा का सार।

आध्यात्मिकता के क्षेत्र में, प्रेम और करुणा केवल भावनाएं नहीं है, बल्कि अस्तित्व की गहन अवस्थाएं है। उन्हें हमारे भीतर दिव्य की अंतिम अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है। ये गुण हमें दूसरों और स्वयं से गहराई से जुड़ने में सक्षम बनाते हैं। प्रेम और करुणा दो ऐसे शब्द है जिनका अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किया जाता है, लेकिन इनका अर्थ अलग-अलग होता है। और ये हमारे जीवन में अलग-अलग भूमिका निभाते हैं। इन दो भावनाओं के बीच अंतर को पहचानना हमारे रिश्तों को बेहतर बना सकता है और दूसरों के साथ गहरे जुड़ाव को बढ़ावा देता है। करुणा का अर्थ है व्यक्तिगत कमियों का सामना करने पर दयालु और समझदार होना। ये बुद्धि के स्तर पर काम करता है भावनाएं को जोड़कर काम करता है इसका मतलब है कि जब आप किसी कठिन समय से गुज़र रहे हों तो आप अपने प्रति उसी तरह से पेश आते हैं जैसे आप अपने किसी प्रिय मित्र के प्रति पेश आते हैं, दुख को देखना, खुद के साथ सहानुभूति रखना या पीड़ा सहना और दया और समझदारी दिखाना ये बात होश के साथ किया जाए तब आप पूर्ण करुणा के तरफ़ बढ़ेंगे वैसे आप चीजों पर निर्भर रहेंगे।

प्रेम को परिभाषित।

प्रेम को अक्सर बिना शर्त के रूप में वर्णित किया जाता है, यह प्रेम का ऐसा रूप है जो व्यक्तिगत लगाव और इच्छाओं से परे जाता है, जो हम कौन हैं, इसके सार तक पहुंचता है। इस प्रकार का प्रेम इस समझ में निहित है कि सभी प्राणी आपस में जुड़े हुए हैं, यह निर्णय या अपेक्षा से रहित है। यह हमें हर किसी और हर चीज़ में दिव्य को देखने के लिए प्रोत्साहित करता है, एकता और शांति की भावना को बढ़ावा देता है। प्रेम एक गहन बहुआयामी भावना है जिसमें स्नेह, देखभाल और लगाव शामिल हैं। इसे अक्सर किसी व्यक्ति या किसी चीज़ के प्रति गर्मजोशी और स्नेह की गहरी भावना के रूप में वर्णित किया जाता है। चाहे वह रोमांटिक प्रेम हो, पारिवारिक प्रेम या दोस्ती, प्रेम की विशेषता दूसरों का पोषण करने और उनका समर्थन करने की इच्छा होती है। देने का मन लुटाने का मन सब कुछ देने का मन ये अवचेतन मन हृदय क्या हिस्सा है हम अभी प्रेम कोई कारण के लिए करते हैं फिर हम प्रेम से चूक जाएंगे प्रेम का कोई उद्देश्य नहीं प्रेम स्वयं एक उद्देश्य है प्रेम बांटना लुटाना ये हंसना गाना खोना सब कुछ ये प्रेम है। और हम प्रेम को सेक्स समझ जाते हैं इसीलिए हम जीवन को जटिल बना देते हैं। प्रेम करने का विषय नहीं है मात्र होने का विषय है। प्रेम कई रूपों में प्रकट होता है, जिसमें भावुक प्रेम शामिल हैं, जो तीव्र होता है जो काम के जुड़ जाता है अति में प्रवेश कर जाता है जिसमें शारीरिक आकर्षण शामिल होता है, और साथी प्रेम जो गहरी दोस्ती और भावनात्मक अंतरंगता से चिह्नित होता है, प्रेम को समझना है फिर ध्यान में प्रवेश करना होगा, सभी इंद्रियां को जानना होगा हम कुछ करेंगे बात करेंगे ये सब काम है प्रेम फिर क्या है मात्र होना न की उससे कुछ लेना बस देना इसे समझना होगा, हम देंगे तो स्वयं को तो खोना होगा स्वयं को बीच में लाना होगा शरीर तो बाधा बनेगी, इसीलिए प्रेम में हमें देना चाहिए जितना हो सके फिर हम भर जाएंगे एक बार खाली तो हो, पूर्ण प्रेम को समझने के लिए ध्यान में उतरन होगा।

करुणा की प्रकृति।

दूसरी ओर, करुणा दूसरों की पीड़ा के साथ सहानुभूति रखने की क्षमता और उनके दर्द को कम करने की इच्छा है। इसमें दूसरों के संघर्षों को पहचानना और दयालुता और समझ के साथ जवाब देना होता है। करुणा उन लोगों से परे है जिन्हें हम प्रेम करते हैं, अजनबियों और ज़रूरतमंद समुदायों तक पहुंचते हैं, इसमें भावना से परे देखने की क्षमता होता है। हम आंख खोलते हैं लेकिन बंद करते हैं बुद्धि का पूर्ण प्रयोग करने से पहले भावना में उतर जाते हैं नीचे की तरफ़ दौड़ लगाते हैं। चेतन मन से शुरू करते हैं अवचेतन मन अचेतन मन पर अंत करते हैं। प्रेम अवचेतन मन से शुरू होता है और अवचेतन अचेतन के बीच समाप्त होता है अगर त्याग की भावना नहीं हो तो। करुणा हमें निस्वार्थ कार्य करने, सहायता प्रदान करने अपने आस-पास के लोगों को आराम प्रदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह एक आवश्यक गुण है जो एकता और मानवता की भावना को बढ़ावा देता है, हमें अधिक अच्छे के लिए कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। करुणा का विकास आत्म करुणा से शुरू होता है स्वयं के साथ कोमल और समझदार होने से, हम दूसरों के लिए भी गर्मजोशी बढ़ा सकते हैं। विकाश और उपचार के लिए एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देता है। जहां भी हम जाते हैं, दुख के कम करने और दयालुता फ़ैलाने की इच्छा होती है।

प्रेम करुणा के बीच मुख्य अंतर।

जबकि प्रेम अक्सर विशिष्ट व्यक्तियों या समूहों के प्रति निर्देशित होता है जिनके साथ हम एक बंधन साझा करते हैं, करुणा अधिक सार्वभौमिक है। प्रेम कभी कभी अनन्य हो सकता है, व्यक्तिगत संबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि करुणा समावेशी होती है, जो व्यतिगत लगाव से परे सभी प्राणियों को गले लगाती है। एक और अंतर भावनात्मक अनुभव में निहित है, प्रेम खुशी से लेकर ईर्ष्या तक की भावनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला को जगा सकता है, जबकि करुणा लगातार गर्मजोशी और मदद करने की इच्छा की भावनाएं लाती है। इन अंतरों को समझने से हमें अपनी भावनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से नेविगेट करने में मदद मिल सकती है। हमें अतीत को समझना होगा भय को समझना होगा इसीलिए हमें ध्यान में उतरना चाहिए।

प्रेम और करुणा के बीच परस्पर क्रिया।

हालांकि अलग-अलग, प्रेम और करुणा आपस में जुड़े हुए हैं और अक्सर एक दूसरे के मजबूत करते हैं। करुणा दूसरों की ज़रूरतों और संघर्षों के बारे में हमारी समझ को बढ़ाकर उनके प्रति हमारे प्रेम के और गहरा कर सकती है। इसी तरह, प्रेम करुणामय कार्यों को प्रेरित कर सकता है, जिससे हमें उन लोगों की देखभाल करने की प्रेरणा मिलती है जिन्हें हम संजोते हैं। इन भावनाओं के बीच अंतर हमारे जीवन को समृद्ध बनाता है, एक संतुलन बनाता है जो स्वस्थ संबंधों और करुणामय समाज को बढ़ावा देता है।

प्रेम और करुणा का विकास करना।

हमारे जीवन में प्रेम और करुणा दोनों को विसकित करने के लिए सजगता और इरादे की आवश्कता होती है। इन भावनाओं को पोषित करने के लिए कुछ तरीके दिए गए हैं।

सहानभूति का अभ्यास करें, दूसरों के दृष्टिकोण और अनुभवों को समझने की कोशिश करें। सक्रिय रूप से सुनने में संलग्न हों, जब आप अपने विचार और भावनाएं साझा करते हैं तो अपना पूरा ध्यान दूसरों पर दें। दयालुता के कार्य करें, छोटे छोटे इशारे देने वाले और प्राप्तकर्ता दोनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता हैं। करुणा पर ध्यान दें, अपने और दूसरों के प्रति करुणा विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ध्यान में उतरे। एक ऐसा समाज जो प्रेम और करुणा पर जोर देता है, वह अधिक सामंजस्यपूर्ण होने की संभावना है, जब व्यक्ति इन भावनाओं को प्राथमिकता देते हैं, तो समुदाय अधिक सहायक वातावरण बन जाते हैं जहां हर कोई पनप सकता है। इससे संघर्ष कम होता है, सहयोग बढ़ता है और सामूहिक कल्याण की भावना बढ़ती है। हमें यदि पूर्ण जानना है फिर हमें स्वयं के अनुभव से जानना होगा प्रेम करुणा दोनों समझना आसान भी नहीं है क्योंकि हम कैसे समझेंगे कि हमारे लिए क्या उचित है प्रेम करने लगते हैं हम इसीलिए दुख हाथ लगता है हम स्वतंत्र नहीं छोड़ना चाहते हैं हम अधिकार जताने लगते हैं फिर ऐसे में हम प्रेम को खो देंगे हमें होश की पूर्ण आवश्कता है और साथ ही ध्यान की भी ऐसे में हम क्रोध के तरफ़ बढ़ जाते हैं घृणा के तरफ़ बढ़ जाते हैं। हमें पूर्ण ध्यान की आवश्कता है तभी हम पूर्ण जागरूक होंगे। हमें निरंतर ध्यान में आने की ज़रूरत है तभी हम जीवन के जटिलता से बाहर आएंगे और जीवन को खूबसूरत बनाएंगे। हमें जल्दी नहीं करना है धैर्य के साथ जागते रहना होगा। उसके बाद जीवन में स्पष्टता और पूर्ण शांति के ओर हम बढ़ेंगे और प्रेम करुणा के पथ पर चलते रहेंगे। एक कदम जागरूकता की ओर।

धन्यवाद।🙏❤️
रविकेश झा।

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