कभी मनाती हो
कभी मनाती हो हंसाती हो,
कभी दिल में छुपाती हो ।
कभी तुम चांद बनकर के,
मुझको बड़ा सताती हो ।।
कभी तुम प्यार का घुंघरू,
मेरे दिल में बजाती हो ।
कभी तुम स्वप्न बन करके,
मेरे सपनों में आती हो ।।
कभी तुम दूर रहकर के,
मेरे नजदीक आती हो ।
मैं पागल हूँ दीवाना हूँ,
तेरा मैं आशिक पुराना हूँ ।।
तुझे कैसे बताऊ मैं …
अपना रिश्ता पुराना है,
तु जब सोचती मन मे…
खबर मुझ तक वो आती है ।।
तेरे एहसान बड़े हैं मुझ पर
कैसे मैं उपकार चुकाऊ,
मैं तो राह भटक ही जाता
तूने मुझको राह दिखाई ।
तेरे कर्ज बहुत है मुझ पर
सदा मैं तुझ पर वार आ जाऊं,
दर्द बहुत थे इस जीवन में
उसमें तूने प्यार जगाया ।।
कैसे मैं उपकार चुकाऊ
वारी वारी वारी जाऊं,
तेरा मैं विश्वास बना और
तू मेरी हमराज बनी ।
हमदर्द बने हम आपस में
हमराज बने हम आपस में,
है विश्वास तेरा जो मुझ पर
कैसे उसका कर्ज चुकाऊ ।।
कैसे मैं ऊपर चुका हूं
तुझ पर तन-मन वार आ जाऊं,
नीरस था यह जीवन मेरा
तूने उसमें रसधार भरी है।
ललकार भारद्वाज