कुछ दर्द बताऊं
कुछ दर्द बताऊं अपने तुमको,
कुछ दर्द तुम्हारे लेता हूं ।
कभी शिक्षा तुमसे लेता हूं,
कभी शिक्षा तुमको देता हूं ।।
मैं ज्ञानी नहीं हूं बिल्कुल भी,
पर ज्ञान तुम्हें में देता हूं ।
मैं तुम्हें जो देता हूं,
हमराज समझ कर देता हूं ।।
मैं मोल सदा इस रिश्ते का,
अनमोल समझता रहता हूं ।
मैं दोस्त तुम्हें कहता हूं,
ये बात समझता रहता हूं ।।
तुम मिले मुझे अचानक ही,
ये आज समझता रहता हूं ।
तुम सुनती हो और कहती हो,
हर बात समझता रहता हूं ।।
तुम दोस्त बनी हो दोस्त ही रहना,
ये अर्ज मैं तुमसे करता हूं ।
यह रिश्ता है अनमोल बहुत,
ये बात मैं तुमसे कहता हूं ।।
ये प्यारी सी जो शैली है,
ये बहुत ही प्यारी लगती है ।
ये आंखों में बातें रख कर,
बिन बोले सब कह देती है ।।
ये जीवन साथी में अपने,
अश्क मेरा ही रखती है ।
ये रूप मेरा ही रखती है,
ये छवि मेरी ही रखती है ।।
ये विश्वास तुम्हारा मुझ पर जो,
विश्वास बढ़ाता रहता हूं ।
मैं तुमको अपने राज तो क्या,
हमराज बनाता रहता हूं ।।
मैं मंद मंद मुस्काता हूं,
और हर राज बताता रहता हूं ।
‘अंदर तक जा बैठी हो,
ये बात बताता रहता हूं ।।
ललकार भारद्वाज