जब जागे तब सवेरा। ~ रविकेश झा
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप लोग आशा करते हैं कि आप सभी अच्छे और स्वस्थ होंगे और जागृत दिशा के ओर बढ़ रहे होंगे। बढ़ना भी चाहिए ध्यान ही आपको स्वयं से परिचित करा सकता है, बस हमें जागने की देरी है जब हम जाग गए फिर हमें अति और क्रोध घृणा से रस नहीं आता हम नीचे नहीं गिरना चाहेंगे। लेकिन ऐसा परिणाम सबसे भाग्य में कहां सब यहां कुछ न कुछ इकट्ठा कर रहा है कोई धन कोई क्रोध कोई पद कोई घृणा कोई मोह सब हर जगह अपने ऊर्जा को लगाएं हुए हैं किसी को नहीं पता सत्य क्या है और कैसे सत्य से परिचित होना है। सब अपने कामना को पूर्ण करने में लगे हुए हैं और बहुत करुणा करने में किसी को कर्म का मतलब नहीं पता तो कोई काम रहित करुणा में डब जाते हैं कुछ चाहिए प्राथना भी करते हैं तो परमात्मा के दिए गए उपहार पर शक करते हैं और चाहिए ऐसे नहीं वैसे चाहिए लेकिन चाहिए। करुणा में कामना को हम छुपा कर रखते हैं। उसके बदले वह मिल जाए चाहे स्वर्ग ही क्यों न हो चाहे नर्क ही क्यों न हो कुछ चाहिए क्यूंकि हमें सिखाया गया करुणा प्रेम सबसे उत्तम लेकिन जो प्रेम और करुणा में उतरेगा वह क्रोध कामना घृणा से भरा परा है कैसे वाणी में मधुरता लायेगा लायेगा भी तो जबरदस्ती प्लास्टिक के जैसा, क्योंकि हम कामना से मुक्त नहीं हुए हैं वासना हमें सताती है कैसे हम प्रेम करुणा करेंगे हृदय को कैसे धड़कने देंगे नहीं साहब ऐसे में जीवन जटिलता से भर जायेगा। हमें ध्यान में उतरना होगा नहीं तो कोई राय कायम करके हम जीवन जीते रहेंगे। हमें ध्यान का अभ्यास करना होगा। जहां भी हम है हमें ध्यान की आवश्कता है हम कभी भी अपने घर में ध्यान कर सकते हैं या कोई मेडिटेशन सेंटर से ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं। हमें शुरू में दिक्कत का सामना हो सकता है। हम घर पर भी ध्यान से जुड़ सकते हैं हम प्रकृति के साथ जी सकते हैं लेकिन हम बाहर नहीं रहना चाहते उसका कारण भी है प्रदूषण बहुत है लेकिन कभी समय निकाल कर हम घूमने जा सकते हैं कही बाहर लेकिन होश के साथ रहना होगा, चुके तो फिर कहीं भी आनंद नहीं मिलेगा जैसे अभी जी रहे हैं वैसे फिर शुरू हो जाएगा हमें ध्यान जागरूकता के साथ कदम उठाना होगा। जब तक हम अंदर नहीं आते जीवंत नहीं होते हम जटिल होते रहेंगे इसीलिए ध्यान सबसे उत्तम उपकरण है बस इसे उपयोग करना आना चाहिए।
हमें अपनी आवश्कता पर भी ध्यान देना होगा, हमें अपने स्वभाव पर ध्यान केंद्रित करना होगा, मन ऐसा क्यों करता है एक से घृणा और एक से प्रेम क्यों करने लगते हैं। हम एक लिए अच्छा और किसी के लिए बुरा क्यों बन जाते हैं क्योंकि हम कामना के अहंकार में जीते हैं हमें बस फायदा चाहिए नुकसान हम नहीं सहते बल्कि हम क्रोध घृणा में जीने लगते हैं। हमें स्वयं के स्वभाव पर विचार करना होगा। कर्तव्य पर ध्यान देना होगा कर्म को विशिष्ट रूप से समझना होगा। हमें उठना होगा होश को समझना होगा, तभी हम वर्तमान तक का सफ़र कर सकते हैं। हमें अच्छा बुरा दोनों में अपना सहमति देना होगा ताकि सभी चीजों में रूचि और निरंतर अभ्यास से स्पष्टता आ सके।
हमें जागरूकता पर काम करना होगा, खट्टा और मीठा अच्छा बुरा दोनों का निर्माण ये प्रकृति कर रहा है हम अच्छे भी हो सकते हैं हम बुरे भी हो सकते हैं संभावना अंदर है और जो दोनों को जान लिया वो आनंद के तरफ बढ़ने लगता है। हमें इस बात को समझना चाहिए दोनों में खुश होना चाहिए तभी हम प्रकृति के साथ स्वयं के स्वभाव को समझ सकते हैं और पूर्ण आनंद और सत्य तक पहुंच सकते हैं। संभावना पर ध्यान देना होगा, हमें कामना और करुणा के प्रति सचेत रहने की आवश्कता है। धैर्य विवेक पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
इसीलिए कहता हूं की स्वयं की खोज की ओर बढ़ना चाहिए ताकि हम पूर्ण आनंद हो सके खिल सके जाग सके और प्रेम शांति के मार्ग पर चलकर हम स्वयं की संभावना को बाहर निकालने दे तभी हम सभी चीजों महारथ हासिल कर सकते हैं। सर्वगुण सम्पन्न हो सकते हैं। हमारे अंदर बहुत संभावना है बस हमें जागना होगा तभी हम ऊपर उठ सकते हैं। हमें सभी चीजों यहां तक कि हमें जो भी करते हैं उसके प्रति जागरूक रहना महत्वपूर्ण होगा। यदि हम जीवन को खुशी के साथ जीना चाहते हैं तो आप जागरूकता के तरफ बढ़ते रहे लेकिन स्वतंत्र होकर आज तक जो भी बाहरी कचरा जमा किए हैं उसे भी स्वतंत्र होकर जानना होगा, घृणा अहंकार क्रोध को हटा कर देखना होगा, ये सब होगा कैसे जागरूकता से ध्यान से निरंतर अभ्यास से जागने से बस भागना नहीं है मानना नहीं है यदि जानना है तो।
हमारे अंदर बहुत सारा ऊर्जा है लेकिन बहुत लोग बस पदार्थ और ऊर्जा तक ही सीमित हो जाते हैं वो चेतना तक नहीं पहुंच पाते बस शरीर भावना और विचार में उलझे रहते हैं विचार चेतना का हिस्सा है लेकिन पूर्ण चेतन नहीं, पूर्ण वर्तमान नहीं बस बुद्धि जो की वर्तमान से भिन्न है हमें अतीत और भविष्य के साथ-साथ वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हम अभी मन के 2 से 3 हिस्सा तक पहुंच पाते हैं चेतन मन तक पहुंचने के लिए पूर्ण जागरूकता लाना होगा अगर दर्शन करना है तो डूबना होगा बाहर से बस आप कल्पना कर सकते हैं। जान नहीं सकते हमें जागरूकता पर काम करना चाहिए ताकि हम भीतर आ सके। यदि हमें सत्य का दर्शन करना है तो हमें पहले जागरूक होना होगा बाकी सब स्वयं हो जायेगा। आप हाथ तो बढ़ाओ परमात्मा आपको मदद करेंगे दर्शन देंगे लेकिन उसके लिए हमें हिम्मत बढ़ाना होगा सभी चीजों को स्वतंत्र होकर जानना होगा। तभी हम सत्य तक पहुंच सकते हैं। सत्य का दर्शन करना अनुभव की बात है साहब न की मानने वाले की, मानने वाले बस कल्पना और उम्मीद तक सीमित रहते हैं जानने वाले स्वयं पर विश्वास करते हैं वो सब कुछ देख सकते हैं।
हमें जागरूक होना होगा तभी हम आगे बढ़ सकते हैं हम यदि सही मायने में जीना चाहते हैं तो हमें जागरूक होना होगा। मन को समझना होगा स्वयं को समझना होगा। जो भी घटना घट रही है उसके प्रति सचेत न किसी में दुखी होना है न अधिक खुश जो साधना ध्यान करना चाहते हैं उनके लिए जिनको जानना है जो सत्य तक पहुंचना चाहते हैं उन्हें शुरू में सभी चीजों में एक जैसा प्रतिक्रिया देना होगा सभी चीजों में सहमति देना होगा सभी चीजों को स्वीकार करना होगा। भागना नहीं है निर्णय से बचना है जानते रहना है अंत तक मानना है ही नहीं कुछ भी यदि जानना है तो। आप सब कुछ करें लेकिन ध्यान का आदत अपने जीवन में डाल लें और निरंतर अभ्यास करते रहे।
जब आप बाहरी चीजों को बदलने में सफल नहीं हो रहे हैं तब आप स्वयं का आंतरिक बदलाव कर सकते हैं। जब आपका आंतरिक विकाश होगा तब ही आप बाहर और भीतर के बीच ठहर सकते हैं,और जीवन को जीवंत कर सकते हैं। लेकिन ये सब के लिए हमारे पास समय नहीं है अगर समय है भी तो हमें भय लगता है जानने में क्योंकि मनुष्य का सबसे बड़ा धन वो स्वयं है शरीर है और वो उसे खोना नहीं चाहेगा।
बहुत व्यक्ति ऐसे भी हैं जो निरंतर अभ्यास से स्वयं से परिचित होते हैं और परमानंद को उपलब्ध होते हैं। जब हम ध्यान का रास्ता अपनाते हैं फिर हमारा शरीर मन भावना सब धीरे धीरे शांत होते जाता है। हमें एक अनोखा शक्ति मिलता है जिसके मदद से हम अपने आप में शांति महसूस करते हैं और जीवन में जागरूकता बढ़ने लगता है। लेकिन ये सब के लिए हमें जागना होगा और निरंतर प्रयास करना होगा तब ही हम अपने जीवन में आनंद ला सकते हैं। हमारे जीवन में बहुत ऐसा मौका मिलता है स्वयं को जानने का 24 घंटे में ऐसे कितने बार हमें स्वयं को जानने का मौका मिलता है लेकिन हम चूकते जाते हैं और फिर जीवन जटिल बनता जाता है।
लेकिन अंत में एक बात आता है मन में सवाल की कामना से कैसे मुक्ति मिलेगी क्योंकि हम कामना के लिए जीवन जीते हैं लेकिन हमें समय भी तो चाहिए जितना समय हमको मिलता है उस में से हम अधिक कामना में ही बिताते हैं अगर समय मिलता भी है तो हमारे ऊर्जा कम होते जाता है शाम होते होते । अगर आपको थोड़ा समय भी मिलता है तो हम व्यस्त होने लगते हैं। हम सोना चाहते हैं या टीवी मोबाइल फोन में व्यस्त होते हैं कामना में अपने आपको रखे रखते हैं। जब जीवन में समस्या हल नहीं होता फिर हम डरने लगते हैं पूजा प्राथना करते हैं लगता है जीवन बहुत कठिन है लेकिन हम सोच के और खराब कर देते हैं। अगर कुछ लाभ हो फिर आप प्रसन्न होते हो और ढिंढोरा पिटते है। लेकिन याद रखिए कि दुख सुख दोनों आप निर्माण करते हैं क्योंकि जब तक आप इनपुट नहीं देंगे आउटपुट कैसे आएगा।
चाभी आपको खोलना होगा। तभी आप अपने जीवन को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। और रूपांतरण करने में सक्षम होंगे। लेकिन ये सब के लिए पहले हमें अपना शरीर को देखना होगा, मन भावना को धीरे धीरे हम निरंतर प्रयास से सत्य से व शून्य से दर्शन कर सकते हैं। लेकिन याद रहे रास्ता होते हुए हमें जाना होगा लेकिन हम सीधा शिखर तक पहुंचना चाहते हैं। इसलिए हमारा सत्य से परिचित नहीं होना स्वाभाविक है और हम लड़ना आरंभ कर देते हैं। जीवन का रूपांतरण करना होगा। लेकिन आप पहले अपने आपको जानने का प्रयास करें। लेकिन हम चाहते हैं कि हम खुश रहे दुख हमें छुए भी नहीं क्योंकि हम दुःख को दुश्मन समझते हैं और खुशी को मित्र, दोनों आप ही निर्माण कर रहे आप के दिमाग में कमांड रहता आप उसे जैसे प्रयोग करें या सुख के साथ रहे या दुःख के साथ, लेकिन जब आप ध्यान करते हैं तब आप दोनों के बीच में आपका देखना है और बस ध्यान को मित्र बना कर आनंदित जीवन जीना है।
हम तीन है हमारे अंदर शिव भी है और शक्ति भी और भावना भी लेकिन हम सब अपने जीवन में खोए रहते हैं समय और ऊर्जा सार्थक उपयोग हम नहीं करते हैं। हमें तीनों को जानना होगा तब पूर्ण विश्वास के पात्र होंगे। क्योंकि हमें नींद बहुत आता है कामना का नींद उससे भागना नहीं है बस जागना है अगर आप भागोगे फिर आप जान नहीं पाओगे और निरंतर प्रयास से हम स्वयं को जान सकते हैं और परमानंद को उपलब्ध हो सकते है।
हमें स्वयं जागना होगा हमें स्वयं के सिवा कोई और संतुष्ट नहीं कर सकता कोई हमें आनंद नहीं दे सकता स्वयं ही हम स्वयं को संतुष्ट और परमानंद की उपलब्धि भी स्वयं से हो सकता है। हमें स्वयं के प्रति श्रद्धा रखना होगा तभी हम खोजने में उत्सुक होंगे।
यदि आप किसी भी चीज़ पर चार से पांच मिनट तक ध्यान केंद्रित करते हैं तभी आप उस चीज़ के बारे में पूर्ण जानते हैं, इसके लिए हमें चेतना पर काम करना होगा, स्वयं को चेतना तक ले जाना होगा। यदि जानना है तो, नहीं तो मानते रहिए, कल्पना करते रहिए, तब आप हृदय में जीते हैं हृदय भी तो भगवान का ही स्थान है भगवान ने ही निर्माण किए हैं। इसीलिए ध्यानी कहते हैं प्रेम करना चाहिए करुणा के पथ पर चलना चाहिए तभी हम अस्तित्व से जुड़ सकते हैं। या तो हम हृदय में जिएंगे या बुद्धि में लेकिन जो दोनों में रहना जान लिया और लिप्त नहीं हुआ वही व्यक्ति सत्य तक पहुंच सकता है।
बस हमें जागरूकता की आवश्कता है हमें बस सचेत रहने की ज़रूरत है, सचेत कैसे रहे इसके लिए अचेत के प्रति जागरूक होना होगा, जहां भी आप जी रहे हैं मन का जो भी हिस्सा हो अगर पता लगाना हो तो हमें जो भी घटना घट रहा है उसे बस देखते रहे ऊपर ध्यान केंद्रित करें पता चल जायेगा हम अतीत के लिए जी रहे हैं या भविष्य के लिए, या वर्तमान में। अतीत हृदय आपको अतीत में ले जायेगा, बुद्धि भविष्य में शांति और आत्मिक लोग को वर्तमान में। हमें बस जागरूक होना है जो भी हो रहा है उसके प्रति ध्यान जागरूकता जड़ को देखन है की ये कहां से आ रह है विचार भावना कलपना कहां से उत्पन्न हो रहा है और इसका अंत कहां है सबके प्रति ध्यान जागरूक होना होगा। तभी हम स्वयं को पहचान पाएंगे। मानना नहीं है यदि जानना है तो। नहीं तो आप कभी जान नहीं पाएंगे। यदि शाक्षी भाव तक जाना है तो शुरू में ध्यान का संघर्ष करना होगा। कहीं देर न हो जाए ऊर्जा नष्ट होने से पहले हमें खोज लेना चाहिए ताकि हम वर्तमान में आ सके और जागृत दिशा की ओर बढ़ते रहे।
हमें जागरूकता बस बनाए रखना महत्वपूर्ण होगा। जब तक जागरूक नहीं होंगे तब तक हम स्वयं को नहीं पहचान पाएंगे बस भटकते रह जायेंगे माथा पिटते रह जायेंगे लेकिन सत्य की अनुभूति नहीं हो सकता। इसीलिए हमें सभी चीजों पर ध्यान केंद्रित करना होगा तभी हम मन बुद्धि के परे जा सकते हैं। जब तक हम संघर्ष नहीं करेंगे तब तक हम सत्य से परिचित नहीं हो सकते। हमें ध्यान में डूबना होगा ताकि सत्य का पता चल सके। हम अतीत में रहना चाहते हैं अतीत को जानना होगा बहुत लोग भविष्य का कामना करते हैं हमें भविष्य के प्रति जागरूक रहना होगा। जागरूकता कैसे लाएं ध्यान कैसे करें स्वयं की खोज प्रेम और भय मन क्या है कर्म योग और भी बहुत लेख लिखा हूं और आशा करता हूं कि आपको समझने में आसानी रहा होगा। आप लोग पढ़ते रहे ध्यान के ओर बढ़ते रहे। सभी चीजों के प्रति जागरूक ही एक मात्र उपाय होगा हमें स्वयं की खोज के लिए।
धन्यवाद।
रविकेश झा।🙏❤️