अविर्भाव…..
अंश कहो मेरा वंश कहो
दैवीय अनमोल उपहार आयी है।
लक्ष्मी कहो या परी कहो
मेरे घर में मेरी पोती आयी है॥
मेरी सुनी जीवन बगिया में
सारे चमन की बहार लायी है।
पिता से मुझे पितामह बनाने
मेरे घर में पहली बार आयी है॥
बहु की आंखों से आँसु गिरे
आंचल में ममता भर आयी है।
पूर्ण हुआ है बेटा उससे ही
सारे जग की खुशियां लायी है॥
नाना, नानी, मामा, मौसी
वह नई रिश्ते अपनी बनायी है।
आलय से लेकर आँगन तक
वह चहुँ ओर आलोक फैलायी है॥
माता-पिता की आश पूर्ण करके
चाँदनी की शीतल रश्मि फैलायी है।
दादी की बन अतिप्रिय दुलारी
दादा के लिए नई गुड़िया लायी है॥
नयी नयी सी वो रोज दिखें
सबकी नयनों में छवि समायी है।
चाचा, फुआ फुले नहीं समाये
वो नवीन संस्कार फैलाने आयी है॥
दुर्गा कहो या शारदा कहो
माता का स्वरुप मेरे घर आयी है।
कुल की रिति रिवाज निभाने
जननी के रुप में पौत्री आयी है॥
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