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20 Nov 2024 · 1 min read

sp59 हां हमको तमगे/ बिना बुलाए कहीं

sp59 हां हमको तमगे/ बिना बुलाए कहीं न जाना
*****************
हाँ हमको तमगे नही मिले पर सच की कलम कुठारी है
और एक सत्य अच्छी कविता सौ -सौ तमगो पर भारी है
@

बिना बुलाए कहीं न जाना फितरत रही हमारी है
नहीं समझ में उसे आए जो सपनों का व्यापारी है

चाहे हो विराट कवि सम्मेलन या कायस्थों का आयोजन
धन की हो बरसात वहां पर या फिर सुंदरियों का दर्शन

उमर थक गई चुक गई चाहत निकट लग रही पारी है
बिना बुलाए कहीं न जाना फितरत रही हमारी है

पाना खोना खेल पुराना सदियों से खेलता जमाना
जो है भाग में वही मिलेगा और नहीं कुछ किसी को पाना

लिखा नियति ने वही मिलेगा होनी ना दुश्वारी है
बिना बुलाए कहीं न जाना फितरत रही हमारी है

ले जा सकता कोई नहीं कुछ यहाँ छोड़ कर सब जाना है
जीवन सार समझ में आया गजब मुसाफिरखाना है

सच सुन लेना फिर गुन लेना नहीं कोई लाचारी है
बिना बुलाए कहीं न जाना फितरत रही हमारी है
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तवsp 59

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