ग़ज़ल
हाय! कितना गंदला अब हो गया अपना शहर।
जाति, भाषा, धर्म सबका घुल गया इसमें ज़हर।।
कल मोहब्बत रात को आई थी अपने देश में ।
पर यहाँ का हाल देखा, तो गई वो भी ठहर ।
अब किनारे पर बहर के देश है अपना खड़ा,
और उसके पास उठ उठकर के आती है लहर ।
जब उजड़ते, टूटते, गिरते हुए देखे मकाँ,
ऐसा मंजर देखकर के, ख़ुद गया शायर सिहर।
— सूर्या