दोहा संग्रह — परधन की लालसा
इस क़दर फंसे हुए है तेरी उलझनों में ऐ ज़िंदगी,
क्यूट हो सुंदर हो प्यारी सी लगती
दर्शक की दृष्टि जिस पर गड़ जाती है या हम यूं कहे कि भारी ताद
अपने आप से भी नाराज रहने की कोई वजह होती है,
तू मेरी मैं तेरा, इश्क है बड़ा सुनहरा
ख़यालों को गर अपने तुम जीत लोगे
*चली आई मधुर रस-धार, प्रिय सावन में मतवाली (गीतिका)*
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
जिंदगी मुझसे हिसाब मांगती है ,
बातों में बनावट तो कही आचरण में मिलावट है