एक ही ज़िंदगी में कई बार मरते हैं हम!
आओ इस दशहरा हम अपनी लोभ,मोह, क्रोध,अहंकार,घमंड,बुराई पर विजय
ज़िम्मेदारियों ने तन्हा कर दिया अपनों से,
हे कलम तुम कवि के मन का विचार लिखो।
स्वीकार्यता समर्पण से ही संभव है, और यदि आप नाटक कर रहे हैं
*चलती सॉंसें मानिए, ईश्वर का वरदान (कुंडलिया)*