ख्वाहिशों से इस क़दर भरा पड़ा है घर
ख्वाहिशों से इस क़दर भरा पड़ा है घर,
कि रिश्तें जरा-सी जगह को तरसते रहते हैं!!
बेजार पड़ी ज़िंदगी से भला क्या अच्छा होगा,
कि लोग मेरी छोटी सी बात पर हंसते रहते हैं!!
तकल्लुफ क्या करें, अब ये सबसे कहने में,
कि हम अच्छे तो हैं मगर, बुरा बनके रहते हैं!!
चाहतें, नसीहतें, और मुहब्बतें मुक्कदर ठहरी,
कि पल पल जीते हैं, पल पल मरते रहते हैं!!
बेपरवाह हुए उसे ही तलाशती रहती है नजर,
कि बा-मशक्कत उम्र अपनी गुजारते रहते हैं!!
ज़िंदगी बेरंग हो गई है रंगीन होते हुए भी,
कि अपने पास होकर भी उसे गंवाते रहते हैं!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”