*बेफिक्री का दौर वह ,कहाँ पिता के बाद (कुंडलिया)*
खुद को खोल कर रखने की आदत है ।
किसी न किसी बहाने बस याद आया करती थी,
कुण्डलिया छंद । बसंत पंचमी
Abhishek Shrivastava "Shivaji"
तूं कैसे नज़र अंदाज़ कर देती हों दिखा कर जाना
आधार निर्माण का कार्य ईश्वर उसी व्यक्ति को देते हैं, जिसका
कितने ही झूठ की बैसाखी बना लो,
कितना कुछ है मेरे भीतर
Kunwar kunwar sarvendra vikram singh
मै अकेला न था राह था साथ मे
वियोग साधिका
Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan"
#पंचैती
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
हिन्दी भाषा के शिक्षक / प्राध्यापक जो अपने वर्ग कक्ष में अंग
किसी भी बात पर अब वो गिला करने नहीं आती