आज यानी 06 दिसंबर अर्थात 05 शताब्दीयो से भी ज्यादा लम्बे काल
शून्य
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
लफ्जों के जाल में उलझा है दिल मेरा,
" प्यार के रंग" (मुक्तक छंद काव्य)
बिखरे खुद को, जब भी समेट कर रखा, खुद के ताबूत से हीं, खुद को गवां कर गए।
आजकल कल मेरा दिल मेरे बस में नही
बाळक थ्हारौ बायणी, न जाणूं कोइ रीत।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
शब्द और अर्थ समझकर हम सभी कहते हैं
तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो
अवचेतन और अचेतन दोनों से लड़ना नहीं है बस चेतना की उपस्थिति