Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Oct 2024 · 5 min read

अजब-गजब

अजब-गजब
——————-

आगरा में बड़ी-सा मकान, पति ठेकेदार तथा बेटा प्राइवेट कम्पनी में लगा हुआ था। मकान वैसे तो सविता के पिताजी का था पर अब वही उसकी मालकिन थी। उसके पिता जी ने अपनी दोनों बेटियों में अपने जायदाद का बंटवारा इस तरह किया था की आगे चलकर दोनों के मध्य कोई भी मतभेद न आ सके। गांव की सारी खेती और मकान बड़ी बेटी को तथा शहर का मकान तथा बैंक की जमा पूंजी छोटी बेटी के नाम कर दिया था। हां इतना जरूर था कि हर माह मिलने वाली पेंशन को वे किसी को भी नहीं देते थे। दोनों बहनें इस बंटवारे से बहुत खुश थीं। माता -पिता के सेवा की भी जिम्मेदारी भी बराबर-बराबर बंटा हुआ था। छः माह वे लोग शहर में रहते तथा छः माह दूसरी बेटी के पास गांव में।
सविता ने अपने ही मायके के चचेरे भाई की बेटी शिखा को अपने बेटे के लिए पसंद किया था। शिखा सुन्दर होने के साथ -साथ गुणी भी बहुत थी। विवाह के बाद उसने पूरे घर की सारी जिम्मेदारी बहुत ही अच्छे ढंग से संभाल लिया था। जल्दी ही वह तीन बेटों की मां भी बन गयी। नाती पाकर सविता व उनके पति तथा पिता व मां सभी निहाल हो गए। घर में खुशियां ही खुशियां
दिखाई देती थी। शिखा का पति भी उसे बहुत प्यार करता था। सविता की बड़ी बेटी व दामाद भी ज्यादातर वहां आया करते थे।
शिखा बड़ी ही लगन और विनम्रता के साथ सबकी ही सेवा में लगी रहती थी। नाना जी यानी सविता के पिताजी शिखा के सेवा भाव से बहुत ही प्रभावित थे। जिस घर में शादी शुदा बेटियां ज्यादा ही अधिकार जमाने लगती हैं उस घर का टूटना लगभग
निश्चित हो जाता है। बेटियां अगर ससुराल पक्ष से सम्पन्न हों तो उनको मायके की सम्पत्ति के लिए लोभ नहीं करना चाहिए। माताएं भी बेटे बहू से अधिक बेटियों के लिए ज्यादा ही प्रेम प्रदर्शित करती हैं। उनका वश चले तो अपनी बेटी को मायके का ईंट पत्थर मिट्टी
सबकुछ भरकर दे दें। यह भी सास-बहू के मध्य मनमुटाव का एक बहुत बड़ा कारण होता है।
‌ शिखा में सेवा भाव की जरा भी कमी नहीं थी उसने अपनी सास के पिताजी की भी उस समय बहुत ही लगन से सेवा की जब वे 90वर्ष की अवस्था में बिस्तर पर पड़े हुए थे। करीब पांच साल वे बिस्तर पर ही थे ।उनकी सेवा न तो उनकी अपनी बेटी ही करती थी और न ही नाती और नातिन। सभी केवल ज़बान से ही प्यार का प्रदर्शन किया करते थे। शिखा को भी घर में इसी कारण ज्यादा इज्जत मिलती थी कि वह घर के काम के साथ ही साथ नाना जी की देखभाल भी लगन से कर रही थी। शिखा के सेवा भाव से प्रभावित होकर नाना जी ने यानी उसकी सास के पिता जी ने अपनी पांच लाख की एफडी शिखा को देने का एलान कर दिया। यहीं से सबके मन में खोट की भावना जन्म लेने लगी थी। जैसे ही नाना जी का देहान्त हुआ, सारा बैंक बैलेंस शिखा की सास सविता
ने अपने नाम करवा लिया।
पांच लाख के लिए सविता की बेटी मायरा भी आगे आ गयी। उसे भी जरूरी काम याद आ गये।
शिखा ने अपनी सास से उन पैसों को अपने बच्चों के
नाम करने के लिए आग्रह किया, “मम्मी जी उन पैसों को तो नाना जी ने मुझे देने का वादा किया था, आप मुझे न सही मेरे बच्चों के नाम ही उन पैसों को कर दीजिए। बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित हो जाएगा।”
“कैसा पैसा? वे पैसे मेरे पिताजी के हैं, मैं उन पैसों का जो चाहूं करुं। तुम कौन होती हो सलाह देने वाली।”
”मम्मी जी, सबके सामने नाना जी ने उन पैसों को मुझे देने के लिए कहा था।” शिखा ने कहा
“पता नहीं मुझे तो नहीं पता है, कह दिया होगा नीम-बेहोशी में। वे मेरे पैसे हैं उनके बारे में अब कभी भी बात मत करना। जाओ अपना काम करो।”
शिखा मायूस होकर वहां से हट गयी। वह अपने को ठगा हुआ सा महसूस कर रही थी। जब तक उसने नाना जी की सेवा की तब तक सभी उसकी वाहवाही कर रहे थे। सविता देवी भी अपने पिता के वायदे का समर्थन कर रही थीं। पर पिता जी के जाने के बाद उन्होंने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया।
शिखा का पति मनीष भी एक छोटी-सी प्राइवेट नौकरी ही करता था। आनाज गांव से आ जाता था बाकी ख़र्च उसके ससुर और पति के पैसों से चलता था। पांच लाख उसके बच्चों के नाम फिक्स हो जाता तो उसे उनके भविष्य के प्रति ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ता। वह कुछ भी समझ नहीं पा रही थी।
कुछ समय बाद शिखा की ननद जी अपने पति के साथ कुछ दिनों के लिए मायके आयीं। वे जब भी मां के पास आतीं थीं उनको कोई न कोई काम अवश्य होता था। इस बार भी वे अपनी डिमांड लेकर ही आयी हुई थीं।
“मम्मी मैं लखनऊ में एक फ्लैट ले रही हूं उसमें क़रीब तीन -चार लाख की और जरूरत है, अगर आप दे देतीं तो मेरा काम बन जाता। सबसे आखिर में आपके पास आयी हूं, इन्कार मत करना।”
“हां, हां क्यों नहीं। सबकुछ तुम्हारा ही तो है। क्यों मनीष?” सविता जी ने इसी बहाने बेटे मनीष की सहमति भी लेनी चाही।
अरे मम्मी, जैसी आपकी मर्जी। बेटे में मां का विरोध करने का साहस ही नहीं था। जितना मां कह देती थी उसके लिए वही पत्थर की लकीर बन जाता था। वह अपने आप निर्णय लेने में सक्षम ही नहीं था।
सविता जी ने अपनी बेटी मायरा को चार लाख का चेक दे दिया। घर में सविता जी का ही बोलबाला था। उनके पति भी उनका विरोध नहीं करते थे उनकी ही हां में हां मिलाया करते थे।
शिखा को यही बात चुभ गयी कि उसकी सास ने उसके पैसे उठा कर उसकी ननद रानी को थमा दिया।अब उसने अपनी सास से अपने जेवर मांगे, उसके जेवर भी सासू मां की हिफाज़त में थे।
मम्मी जी आप मेरे बक्से की चाभी दे दीजिए। कुछ सामान लेना है।
सविता देवी ने उसके बक्से की चाभी थमा दी, “लो जाकर ले लो सामान। उसमें क्या रखा है, कुछ भी तो नहीं है।”
शिखा को काटो तो खून नहीं, फिर भी वह चाभी उठाकर अपने बक्से के पास पहुंची। बक्सा खोलते ही वह बेहोश होते -होते बची। बक्से में कुछ भी नहीं था केवल कुछ सस्ती सी साड़ियां ही थी बाकी मंहगी साड़ियां कपड़े और ज़ेवर कुछ भी उसमें नहीं था।
मम्मी जी ये क्या कर रही हैं, मेरा सब सामान कहां है?
“तेरी मां ने चोरी कर लिया होगा, मुझे क्या मालूम तेरा सामान। बेटा देख रहा है तेरी पत्नी मुझे चोर कह रही है।” सविता देवी ने बेटे मनीष को घूरते हुए कहा।
मनीष ने अपनी पत्नी को शिखा को वहीं पर तीन चार थप्पड़ जड़ दिया मगर मां से यह नहीं पूछा कि उसका सामान कहां चला गया?
शिखा ने अपने तीन बच्चों में से दो बेटों को वहीं छोड़ दिया और सबसे छोटे दो साल के बेटे को लेकर मायके चली गई। उसने सास के जीते जी ससुराल न आने की क़सम खा ली। इधर सविता देवी इस कोशिश में हैं कि शिखा को तलाक़ दिला दें और उनके तीन बच्चों के बाप बेटे के लिए कोई अच्छा खासा दहेज वाली बहू मिल जाए।

डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली

Language: Hindi
2 Likes · 114 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Sarla Sarla Singh "Snigdha "
View all

You may also like these posts

तेरे दिल की आवाज़ को हम धड़कनों में छुपा लेंगे।
तेरे दिल की आवाज़ को हम धड़कनों में छुपा लेंगे।
Phool gufran
खुद को भी अपना कुछ अधिकार दीजिए
खुद को भी अपना कुछ अधिकार दीजिए
Dr fauzia Naseem shad
3244.*पूर्णिका*
3244.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
आपसे होगा नहीं , मुझसे छोड़ा नहीं जाएगा
आपसे होगा नहीं , मुझसे छोड़ा नहीं जाएगा
Keshav kishor Kumar
नास्तिकों और पाखंडियों के बीच का प्रहसन तो ठीक है,
नास्तिकों और पाखंडियों के बीच का प्रहसन तो ठीक है,
शेखर सिंह
मैं अंतिम स्नान में मेरे।
मैं अंतिम स्नान में मेरे।
Kumar Kalhans
At the end of the day, you look back on what you have been t
At the end of the day, you look back on what you have been t
पूर्वार्थ
कैसा क़हर है क़ुदरत
कैसा क़हर है क़ुदरत
Atul "Krishn"
देह मन्दिर को बनाकर पुजता मैं प्रेम तेरा
देह मन्दिर को बनाकर पुजता मैं प्रेम तेरा
Harinarayan Tanha
टेढ़ी-मेढ़ी बातें
टेढ़ी-मेढ़ी बातें
Surya Barman
बहती जहां शराब
बहती जहां शराब
RAMESH SHARMA
वफ़ाओं ने मुझे लूट लिया,
वफ़ाओं ने मुझे लूट लिया,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कुछ खो गया, तो कुछ मिला भी है
कुछ खो गया, तो कुछ मिला भी है
Anil Mishra Prahari
*Bountiful Nature*
*Bountiful Nature*
Veneeta Narula
गलतियां
गलतियां
Nitin Kulkarni
"भिखारियों की क्वालिटी"
Dr. Kishan tandon kranti
राम और कृष्ण
राम और कृष्ण
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
अद्भुत प्रयास
अद्भुत प्रयास
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
प्यासा के हुनर
प्यासा के हुनर
Vijay kumar Pandey
ख्वाबों में मिलना
ख्वाबों में मिलना
Surinder blackpen
भारत माता का गौरव गान कीजिए
भारत माता का गौरव गान कीजिए
Sudhir srivastava
नारी तेरी यही अधूरी कहानी
नारी तेरी यही अधूरी कहानी
Rekha khichi
मेहंदी देती सीख
मेहंदी देती सीख
भगवती पारीक 'मनु'
बस यूँ ही
बस यूँ ही
Neelam Sharma
खुद को खुद से मिलाना है,
खुद को खुद से मिलाना है,
Bindesh kumar jha
●शुभ-रात्रि●
●शुभ-रात्रि●
*प्रणय प्रभात*
इंतजार
इंतजार
Sumangal Singh Sikarwar
*बिजली पानी सड़क सफाई (हिंदी गजल)*
*बिजली पानी सड़क सफाई (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
मेरी प्रिय हिंदी भाषा
मेरी प्रिय हिंदी भाषा
Anamika Tiwari 'annpurna '
Sometimes it hurts when you constantly cheer up your friends
Sometimes it hurts when you constantly cheer up your friends
पूर्वार्थ देव
Loading...