Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Oct 2024 · 1 min read

हमराही

काश जीवन एक सफर होता
और हम सभी होते राही
निकल पड़ते अनजाने रास्तों पर
संचित करने की प्रवृत्ति ना होती हावी

आने जाने वाले होते सभी अपने
ना रिश्ते, ना धर्म, ना झूठे सपने
कुछ गुफ्तगू करते, कुछ मुस्कुराते
ना मतलब ढूंढते, ना फायदा तलाशते

नये मोड़ पर नयी ऊर्जा के साथ
फिर फिर निकलते दुरत गति के साथ
जोड़ तोड़ की गंदगी से परे
सभी समान गति से आगे बढ़ते

गर जीवन एक सफर होता
वह कितना अद्भुत होता

चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)

Language: Hindi
96 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Chitra Bisht
View all

You may also like these posts

अनंत शून्य
अनंत शून्य
Shekhar Deshmukh
गणेश वंदना छंद
गणेश वंदना छंद
Dr Mukesh 'Aseemit'
जिंदगी में सफ़ल होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जिंदगी टेढ़े
जिंदगी में सफ़ल होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जिंदगी टेढ़े
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आग़ाज़
आग़ाज़
Shyam Sundar Subramanian
मैं तुम और हम
मैं तुम और हम
Ashwani Kumar Jaiswal
तुम्हें अहसास है कितना तुम्हे दिल चाहता है पर।
तुम्हें अहसास है कितना तुम्हे दिल चाहता है पर।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
तुम कहो कोई प्रेम कविता
तुम कहो कोई प्रेम कविता
Surinder blackpen
परिवर्तन ही वर्तमान चिरंतन
परिवर्तन ही वर्तमान चिरंतन
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
बढ़ता चल
बढ़ता चल
Mahetaru madhukar
भूलने दें
भूलने दें
Dr.sima
कृतज्ञता
कृतज्ञता
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
भारत
भारत
अश्विनी (विप्र)
"कश्मकश"
Madhu Gupta "अपराजिता"
दरवाजे
दरवाजे
पूर्वार्थ
चौपाई छंद गीत
चौपाई छंद गीत
seema sharma
प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में सुकून !!
प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में सुकून !!
Rachana
दोहा पंचक. . . . शीत
दोहा पंचक. . . . शीत
sushil sarna
अपना-अपना
अपना-अपना "टेलिस्कोप" निकाल कर बैठ जाएं। वर्ष 2047 के गृह-नक
*प्रणय प्रभात*
“परिंदे की अभिलाषा”
“परिंदे की अभिलाषा”
DrLakshman Jha Parimal
घर से निकालकर सड़क पर डाल देते हों
घर से निकालकर सड़क पर डाल देते हों
Keshav kishor Kumar
याद रक्खा नहीं भुलाया है
याद रक्खा नहीं भुलाया है
Dr fauzia Naseem shad
तिलक-विआह के तेलउँस खाना
तिलक-विआह के तेलउँस खाना
आकाश महेशपुरी
राजनीति के खेल निराले
राजनीति के खेल निराले
Mukesh Kumar Rishi Verma
सबको बस अपनी मेयारी अच्छी लगती है
सबको बस अपनी मेयारी अच्छी लगती है
अंसार एटवी
लतियाते रहिये
लतियाते रहिये
विजय कुमार नामदेव
माटी करे पुकार 🙏🙏
माटी करे पुकार 🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
सावन आया
सावन आया
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
4763.*पूर्णिका*
4763.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
कुछ यूँ मैंने खुद को बंधा हुआ पाया,
कुछ यूँ मैंने खुद को बंधा हुआ पाया,
पूर्वार्थ देव
Loading...